साईं बाबा की जीवन यात्रा: जन्म, परिवार और अंतिम समय की रहस्यमय घटनाएँ
साईं बाबा का जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि
साईं बाबा का जन्म 27-28 सितंबर 1830 को महाराष्ट्र के परभणी जिले के पाथरी गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम परशुराम भुसारी था, जबकि माता का नाम अनुसूया था। इस परिवार में कुल पाँच बेटे थे, जिनमें साईं बाबा का नाम हरिभाऊ रखा गया था। उनके जन्मस्थान पर अब एक मंदिर स्थापित किया गया है, जिसमें उनकी मूर्ति भी स्थापित की गई है।
साईं बाबा और उनकी विशेष ईंट
साईं बाबा के जीवन में एक महत्वपूर्ण वस्तु उनकी एक ईंट है, जिस पर वे सोते थे। यह ईंट उनके छात्र जीवन के दौरान वैंकुशा के आश्रम से जुड़ी हुई थी। उस समय वैंकुशा और अन्य शिष्यों के बीच विवाद था, लेकिन वैंकुशा का साईं बाबा के प्रति प्रेम बढ़ता गया। एक बार जब कुछ लोग बाबा पर ईंट-पत्थर फेंकने लगे, तो वैंकुशा ने उनकी रक्षा करते हुए सिर पर ईंट लगने से चोट खाई। उस खून से साईं बाबा ने तीन लपेटे बनाए, जिन्हें उन्होंने ज्ञान और सुरक्षा का आशीर्वाद माना। यह ईंट बाबा ने अपने जीवनभर सिरहाने के रूप में रखी।
ईंट के टूटने का रहस्य और साईं बाबा की अंतिम यात्रा
सितंबर 1918 में, दशहरे से कुछ दिन पहले, मस्जिद की सफाई के दौरान एक भक्त के हाथ से वह खास ईंट गिरकर टूट गई। इस घटना ने वहां मौजूद सभी को चौंका दिया। साईं बाबा ने मुस्कुराते हुए कहा, "यह ईंट मेरी जीवनसंगिनी थी, अब यह टूट गई तो समझ लो मेरा समय भी पूरा हो गया।" इसके बाद उन्होंने अपनी महासमाधि की तैयारी शुरू कर दी। कुछ दिन बाद, उन्होंने अपने भक्त रामचन्द्र पाटिल को तात्या की मृत्यु का संकेत दिया। तात्या की गंभीर स्थिति के बावजूद, बाबा ने 15 अक्टूबर 1918 को विजयादशमी के दिन अपना शरीर त्याग दिया और ब्रह्मलीन हो गए।
संक्षेप में
साईं बाबा की मृत्यु से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात उनकी उस खास ईंट से है, जो उनके लिए जीवनसंगिनी के समान थी। जब वह टूटी, तब बाबा ने अपने अंत का संकेत दिया। यही घटना उनकी अंतिम समय की शुरुआत बनी और उन्होंने दशहरे के दिन 1918 में अपनी समाधि ली।