सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यपालों की शक्तियों पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की

सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि राज्यपालों और राष्ट्रपति को राज्य विधेयकों पर कार्रवाई के लिए किसी न्यायिक समय-सीमा का पालन करने की आवश्यकता नहीं है। इस निर्णय ने शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत को स्पष्ट किया है और राज्यपालों की निष्क्रियता पर भी न्यायालय ने टिप्पणी की है। जानें इस निर्णय के पीछे की वजहें और इसके केंद्र-राज्य संबंधों पर संभावित प्रभाव।
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सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यपालों की शक्तियों पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की

संविधान पीठ का निर्णय

गुरुवार को, सर्वोच्च न्यायालय की एक संविधान पीठ ने स्पष्ट किया कि राज्यपालों और राष्ट्रपति को राज्य विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए किसी न्यायिक रूप से निर्धारित समय-सीमा का पालन करना अनिवार्य नहीं है। पीठ ने कहा कि इस तरह के निर्देश शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन करेंगे और संवैधानिक ढांचे को विकृत कर देंगे।


राज्यपाल की निष्क्रियता पर न्यायालय की टिप्पणी

न्यायालय ने यह भी बताया कि अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपालों के निर्णय सामान्यतः न्यायोचित नहीं होते, लेकिन यदि राज्यपाल लंबे समय तक निष्क्रिय रहते हैं, तो यह सीमित न्यायिक जांच को आमंत्रित कर सकता है। इससे न्यायालय को विधेयक के गुण-दोष की जांच किए बिना राज्यपाल को विकल्प चुनने का निर्देश देने की अनुमति मिलती है।


राष्ट्रपति संदर्भ पर सलाहकार राय

भारत के मुख्य न्यायाधीश भूषण आर. गवई ने एक दुर्लभ राष्ट्रपति संदर्भ पर सलाहकार राय देते हुए कहा कि राज्यपालों को सामान्यतः मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करने की अपेक्षा की जाती है, लेकिन संविधान में विवेकाधिकार के सीमित क्षेत्र भी निर्धारित हैं।


पीठ में शामिल न्यायाधीश

इस पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति अतुल एस चंदुरकर शामिल थे। यह मामला कई वर्षों में पहला राष्ट्रपति संदर्भ मामला है, जिसका केंद्र-राज्य संबंधों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा।