सर्वोच्च न्यायालय का आवारा श्वानों के मुद्दे पर सख्त रुख
आवारा श्वानों की समस्या पर न्यायालय की पहल

देश के सर्वोच्च न्यायालय ने न्याय से जुड़े कई मुद्दों पर स्वतः संज्ञान लेते हुए आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए हैं। यह निर्देश केंद्र और राज्य सरकारों के लिए सुधारात्मक उपायों के रूप में कार्य करते हैं। न्यायालय का कर्तव्य है कि वह जनहित से जुड़े मामलों में संवैधानिक दायरे में अपनी स्थिति स्पष्ट करे, जबकि सरकार का दायित्व है कि वह संविधान के अनुसार समस्याओं का समाधान करे।
श्वानों के बढ़ते आतंक के मद्देनजर, न्यायालय ने शेल्टर होम बनाने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। यह समझना आवश्यक है कि इस पारिस्थितिकी तंत्र में मानव निर्मित समस्याएं हैं, जिसके कारण न केवल मनुष्य, बल्कि अन्य जीव-जंतु भी अपने दायरे से बाहर निकल रहे हैं। यदि मनुष्य अपने दायरे में रहेगा, तो आवारा श्वानों के लिए कठोर निर्णय की आवश्यकता क्यों पड़ेगी?
न्यायालय ने मनुष्य और पशुओं के बीच बढ़ती जटिलता पर सख्त रुख अपनाया है। आवारा श्वानों का प्रबंधन, उनकी सुरक्षा और स्वास्थ्य अब प्राथमिकता बन गई है। सवाल यह है कि इस गंभीर समस्या के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या गौवंश का संरक्षण और संवर्धन सही तरीके से किया गया है? क्या अवैध परिवहन और बूचड़खानों तक पहुंचने का खेल समाप्त हो गया है?
यदि पशु जन्म नियंत्रण नियमों को गंभीरता से लिया गया होता, तो आवारा श्वानों की संख्या इतनी नहीं बढ़ती। उच्चतम न्यायालय का यह निर्णय जनसुरक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।
अदालत ने आवारा श्वानों को संस्थागत क्षेत्रों से हटाने के आदेश को व्यापक दृष्टिकोण में देखने की आवश्यकता बताई है। न केवल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, बल्कि पूरे देश में यह समस्या गंभीर है। अदालत ने पहले भी मीडिया रिपोर्टों का संज्ञान लिया था और स्पष्ट किया था कि जनसुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। इस बार भी जनसुरक्षा को प्राथमिकता दी गई है।
विशेष पीठ ने शुक्रवार को आवारा श्वानों के मामले में कई महत्वपूर्ण बातें कहीं। अदालत ने शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों, रेलवे स्टेशनों और बस स्टैंडों में श्वानों द्वारा काटे जाने की बढ़ती घटनाओं पर ध्यान दिया है। अधिकारियों को सचेत करते हुए, न्यायालय ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण सहित सभी प्राधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे आवारा श्वानों और अन्य मवेशियों को राजमार्गों से हटाकर निर्दिष्ट आश्रय स्थलों पर ले जाएं।
राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को स्थानीय नगर निकायों के माध्यम से ऐसे क्षेत्रों की पहचान करनी होगी जहां आवारा श्वान पाए जाते हैं। हालांकि, पिछले आदेश में श्वानों की नसबंदी और टीकाकरण के बाद उन्हें वहीं छोड़ने का निर्देश दिया गया था, लेकिन इस बार का आदेश स्पष्ट है। अब अधिकारियों को आवारा श्वानों और अन्य जानवरों को राजमार्गों और संस्थागत क्षेत्रों से हटाना होगा; उन्हें पुनः वहीं नहीं छोड़ा जा सकेगा।
अदालत ने मानवीय संवेदना और जनसुरक्षा के बीच संतुलन बनाने पर जोर दिया है। लेकिन यह भी ध्यान रखना चाहिए कि घरों में पाले जाने वाले श्वानों के बजाय सड़कों पर घूमने वाले श्वानों के प्रति अनदेखी और उनके साथ होने वाले व्यवहार ने उन्हें हिंसक बना दिया है। समस्या का समाधान केवल उन्हें स्थानांतरित करने से नहीं होगा। जब तक मनुष्य अपनी जीवनशैली में हो रहे बदलावों और प्राणियों के प्रति सहानुभूति की कमी पर विचार नहीं करेगा, तब तक यह समस्या बनी रहेगी।
