समाजवादी पार्टी की पीडीए पाठशाला: शिक्षा का राजनीतिकरण या सामाजिक न्याय का प्रयास?
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी द्वारा आयोजित पीडीए पाठशाला ने शिक्षा और राजनीति के बीच एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। इस कार्यक्रम में बच्चों को राजनीतिक नेताओं के नाम सिखाए जा रहे हैं, जिससे विपक्षी दलों ने आपत्ति जताई है। सपा का कहना है कि यह सामाजिक न्याय का प्रयास है, जबकि भाजपा और कांग्रेस इसे बच्चों की मासूमियत का राजनीतिकरण मानते हैं। क्या यह शिक्षा का सही उपयोग है या बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़? जानें इस मुद्दे पर सभी पक्षों की राय और ताजा घटनाक्रम।
Aug 2, 2025, 12:42 IST
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पीडीए पाठशाला का विवाद
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी द्वारा आयोजित पीडीए पाठशाला (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) कार्यक्रम इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। इस पाठशाला के अंतर्गत बच्चों को अक्षरों की पहचान कराते हुए ‘ए से अखिलेश यादव’ और ‘डी से डिंपल यादव’ पढ़ाया जा रहा है। देखा जाये तो समाजवादी पार्टी का परिवारवाद इस पाठशाला में भी छाया हुआ है क्योंकि बच्चों को सिर्फ परिवारवादी नेताओं के ही बारे में बताया जा रहा है। दूसरी ओर सपा का कहना है कि यह कार्यक्रम सामाजिक न्याय और अपने नेताओं से परिचय कराने का एक रचनात्मक प्रयास है, लेकिन विपक्षी दलों ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है। वहीं समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ऐलान किया है कि अगर सरकार स्कूल बंद करेगी, तो समाजवादी लोग 'PDA पाठशाला' चलाएंगे। उन्होंने कहा है कि यह लड़ाई सिर्फ़ स्कूलों की नहीं, बल्कि संविधान, सामाजिक न्याय और ग़रीबों के भविष्य की है。
विपक्ष की प्रतिक्रिया
दूसरी ओर, भाजपा और कांग्रेस नेताओं ने आरोप लगाया है कि सपा बच्चों की मासूमियत का राजनीतिकरण कर रही है। उनका कहना है कि शिक्षा का उद्देश्य निष्पक्ष और तटस्थ होना चाहिए, न कि किसी पार्टी या नेता के नाम पर आधारित। वहीं, सपा नेताओं का तर्क है कि वे सामाजिक समानता और जागरूकता फैलाने के लिए बच्चों में अपने विचारधारा के प्रति जागरूकता पैदा कर रहे हैं। हम आपको बता दें कि इस समय सोशल मीडिया पर पीडीए पाठशाला के कई वीडियो वायरल हो रहे हैं।
शिक्षा का राजनीतिकरण
बच्चों की शिक्षा के लिए कोई राजनीतिक दल योगदान दे तो उसमें कुछ गलत नहीं है लेकिन शिक्षा का राजनीतिकरण करना बिल्कुल गलत है। बच्चों को किसी भी प्रकार की राजनीतिक विचारधारा या नेता-विशिष्ट छवि के साथ जोड़ना शिक्षा की तटस्थता पर सवाल खड़े करता है। शिक्षा का मूल उद्देश्य बच्चों में तार्किक सोच, रचनात्मकता और नैतिक मूल्यों का विकास करना है। जब छोटे बच्चों को नेता-विशेष से जोड़कर पढ़ाया जाता है, तो उनकी मानसिकता पर अनावश्यक प्रभाव पड़ सकता है।
भविष्य की चिंता
अखिलेश यादव और उनके समर्थकों को पीडीए पाठशाला का प्रयोग भले अच्छा लगे लेकिन उन्हें समझना होगा कि छोटी उम्र में बच्चों के मन में किसी राजनीतिक दल या नेता का नाम जोड़ना उनके लिए पूर्वाग्रह पैदा कर सकता है। शिक्षा को निष्पक्ष होना चाहिए। इस तरह के प्रयास शिक्षा को राजनीतिक प्रचार का माध्यम बना देते हैं। राजनीतिक दलों को समझना चाहिए कि बच्चों को विचारधाराओं से जोड़ने की बजाय उन्हें ज्ञान, संस्कार और तार्किकता पर आधारित शिक्षा देना ही समाज और लोकतंत्र के लिए हितकारी है।
राजनीतिक बयानबाजी
सपा की पीडीए पाठशाला पर राजनीतिक बयानबाजी भी तेज हो चली है। जहां अखिलेश यादव इसे सही बता रहे हैं वहीं उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने कहा है कि सपा अपने राजनीतिक हितों को पूरा करने के लिए इस हद तक जा सकती है कि बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है। सब जानते हैं कि उनकी पाठशाला में केवल परिवारवाद ही है। भूपेंद्र चौधरी ने कहा कि समाजवादी पार्टी जब सत्ता में थी, तब भी उन्होंने बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने का काम किया और आज भी वही कर रही है।
स्कूलों का मर्जर
हम आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में ऐसे स्कूलों का मर्जर किया जा रहा है जहां बच्चों की संख्या 50 से कम है। प्रदेश सरकार के इस फैसले का समाजवादी पार्टी समेत तमाम विरोध दल विरोध कर रहे हैं। सपा की ओर से इसके विरोध में पीडीए पाठशाला का आयोजन किया जा रहा है। जिन-जिन स्कूलों का मर्जर हुआ है उनके पास ही ये पाठशालाएं चलाईं जा रही हैं। इन पाठशालाओं में सपा नेता बच्चों को स्कूल की ड्रेस में बुला रहे हैं और उन्हें ए फॉर अखिलेश यादव और डी फॉर डिंपल यादव पढ़ा रहे हैं। रिपोर्टों के मुताबिक भदोही और कानपुर में सपा नेताओं पर इस अवैध पाठशाला को लेकर केस भी दर्ज किया गया है。