सबरीमाला मंदिर में इरुमुदिकट्टू का महत्व और अनुष्ठान

केरल के सबरीमाला मंदिर में इरुमुदिकट्टू का विशेष महत्व है, जो भक्तों की 41 दिनों की तपस्या का प्रतीक है। इस थैले में भगवान को अर्पित किया जाने वाला प्रसाद और अन्य पूजा सामग्री होती है। जानें इस अनुष्ठान के पीछे की धार्मिक मान्यताएं और इसकी प्रक्रिया के बारे में।
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सबरीमाला मंदिर में इरुमुदिकट्टू का महत्व और अनुष्ठान

इरुमुदिकट्टू: एक विशेष अनुष्ठान

सबरीमाला मंदिर में इरुमुदिकट्टू का महत्व और अनुष्ठान

इरुमुदिकट्टू

केरल के सबरीमाला में मकरविलक्कु तीर्थयात्रा का आयोजन हो रहा है, जिसमें श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या मंदिर में पहुंच रही है। भक्त 18 पवित्र सीढ़ियां चढ़कर भगवान अयप्पा के दर्शन के लिए इरुमुदिकट्टू लेकर जाते हैं। यह एक विशेष थैला है, जिसे भक्त अपने सिर पर रखते हैं।

भक्त 41 दिनों तक कठोर उपवास रखते हैं, काले कपड़े पहनते हैं और मालाएं धारण करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को पूरी श्रद्धा से रखने से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आ सकते हैं। आइए जानते हैं कि इरुमुदिकट्टू का क्या महत्व है और यह कैसे किया जाता है।

सबरीमाला में इरुमुदिकट्टू का महत्व

सबरीमाला में भगवान अयप्पा से जुड़े अनुष्ठानों में इरुमुदिकट्टू एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। जब भक्त 18 सीढ़ियां चढ़ते हैं, तो वे अपने सिर पर इरुमुदिकट्टू पहनते हैं। यह केवल एक थैला नहीं है, बल्कि यह भक्त की 41 दिनों की तपस्या और आध्यात्मिक यात्रा का प्रतीक है।

इरुमुदिकट्टू में क्या शामिल होता है?

इरुमुदिकट्टू में भगवान को अर्पित किया जाने वाला प्रसाद होता है, जिसमें मुख्यतः सूखे चावल शामिल होते हैं। इसके अलावा, इसमें घी से भरा नारियल भी होता है, जो भक्त के समर्पण का प्रतीक है। अन्य पूजा सामग्री जैसे कपूर, रेशम, अवल, फूल और पान भी इसमें शामिल होते हैं। पिनमुड़ी का उपयोग यात्रा के दौरान आवश्यकताओं के लिए किया जाता है।

कुछ स्थानों पर नादुमुदी नामक प्रथा भी होती है, जिसमें चढ़ावे के सिक्के और रसीदें एक छोटी पोटली में बांधकर रखी जाती हैं। यह प्रथा कुछ विशेष स्थानों पर प्रचलित है।