सतुआ बाबा: प्रयागराज में माघ मेले की तैयारियों के बीच चर्चा में आए

प्रयागराज में माघ मेले की तैयारियों के बीच सतुआ बाबा का नाम चर्चा में है। उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने डीएम मनीष वर्मा को सतुआ बाबा की रोटी बनाने से बचने की सलाह दी। जानें सतुआ बाबा कौन हैं और क्यों हैं खास। उनका असली नाम संतोष दास है और वह वाराणसी में स्थित सतुआ बाबा पीठ के प्रमुख हैं।
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सतुआ बाबा: प्रयागराज में माघ मेले की तैयारियों के बीच चर्चा में आए

प्रयागराज में माघ मेले की तैयारियों का निरीक्षण

सतुआ बाबा: प्रयागराज में माघ मेले की तैयारियों के बीच चर्चा में आए

सतुआ बाबा

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में माघ मेले की तैयारियों की प्रक्रिया चल रही है, जो कि संगम नगरी में 3 जनवरी से शुरू होने वाला है। हालांकि, मेले की तैयारियों को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। इसी बीच, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने मेला स्थल का आकस्मिक निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान, डीएम मनीष वर्मा भी वहां मौजूद थे। डिप्टी सीएम ने उन्हें सतुआ बाबा की रोटी बनाने के मामले में न पड़ने की सलाह दी।

केशव प्रसाद मौर्य ने डीएम मनीष वर्मा से कहा कि संतोष दास उर्फ सतुआ बाबा के चक्कर में न पड़ें। उनकी इस बात पर वहां मौजूद लोग हंस पड़े, जिससे माहौल हल्का हो गया। दरअसल, हाल ही में डीएम का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वह खाक चौक में सतुआ बाबा के शिविर में रोटी बनाते हुए दिखाई दिए थे।

डीएम के रोटी बनाते हुए वीडियो की चर्चा राजधानी लखनऊ तक पहुंच गई। इसी कारण, माघ मेले की तैयारियों के निरीक्षण के दौरान डिप्टी सीएम ने डीएम को सतुआ बाबा के शिविर में रोटी बनाने से बचने की सलाह दी। इसके साथ ही, उन्होंने उन साधु संतों की भी याद दिलाई, जिन्हें अब तक मेले में उचित स्थान और सुविधाएं नहीं मिली हैं। इस सलाह के बाद सतुआ बाबा एक बार फिर चर्चा में आ गए हैं। आइए जानते हैं, ये बाबा खास क्यों हैं?

सतुआ बाबा का परिचय

सतुआ बाबा का असली नाम संतोष दास है। वह विष्णु स्वामी संप्रदाय के वर्तमान पीठाधीश्वर हैं और वाराणसी में स्थित सतुआ बाबा पीठ के प्रमुख हैं। उन्हें अक्सर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ देखा जाता है, जिससे उनकी चर्चा बढ़ती है। उन्हें जगद्गुरु की उपाधि भी प्राप्त है और वह समाज सेवा तथा आध्यात्मिक शिक्षा के लिए जाने जाते हैं।

सतुआ बाबा का आश्रम वाराणसी के मणिकर्णिका घाट के निकट स्थित है, जो संस्कृत शिक्षा और गायों की सेवा के लिए प्रसिद्ध है। उन्होंने 11 साल की उम्र में 100 रुपए लेकर घर छोड़ दिया और आध्यात्मिक मार्ग अपनाया। उन्होंने वाराणसी में शिक्षा प्राप्त की और अपने गुरु के निधन के बाद सतुआ बाबा पीठ के मुखिया बने। उनके गुरु का निधन 2011 में हुआ था। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, संतोष दास का जन्म उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

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