संगीत की मधुरता: तुलसी भाई और लता मंगेशकर की यादें
1991 की यादें: एक सांस्कृतिक कार्यक्रम
यह कहानी 1991 की है, जब मैं अहमदाबाद में नौकरी कर रहा था। उस समय, हमारे दफ्तर में हर साल स्टाफ कल्याण समिति द्वारा एक वार्षिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता था, जिसमें सभी कर्मचारी उत्साह से भाग लेते थे। उस वर्ष, मुझे सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन करने का जिम्मा मिला। लगभग एक महीने पहले से ही, उत्साही स्टाफ सदस्यों ने नृत्य, गायन और नाटक की तैयारी शुरू कर दी थी। इसी दौरान, एक दिन मेरे सहकर्मी एक साधारण दिखने वाले बुजुर्ग व्यक्ति, तुलसी भाई, को लेकर आए। उन्होंने कहा कि वह भी कार्यक्रम में गाना चाहते हैं। मैंने उन्हें बताया कि यह हमारी संस्था का कार्यक्रम है, लेकिन उन्होंने कहा कि वह हमारे पड़ोसी हैं। उनकी बात ने मुझे प्रभावित किया।
हमने उन्हें बोर्ड रूम में बुलाया और पूछा कि वह क्या गाएंगे। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, 'बस एक गीत सुन लीजिए।' उन्होंने गाना शुरू किया, और उनकी आवाज़ ने हमें मंत्रमुग्ध कर दिया। उनकी आवाज़ में लता मंगेशकर की मिठास थी। हमने तुरंत तय किया कि वह हमारे कार्यक्रम के विशेष अतिथि गायक होंगे। कार्यक्रम की तारीख 9 मार्च 1991 आई, और जब उन्होंने गाना गाया, तो पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा।
आज, मुझे नहीं पता कि तुलसी भाई कहां हैं। लेकिन जब भी मैं 'रंग दिल की धड़कन भी लाती तो होगी' सुनता हूं, उनकी याद आ जाती है। इस गीत के साथ, चित्रगुप्त और लता जी के अन्य मधुर गीत भी याद आते हैं।
राजेंद्र कृष्ण द्वारा लिखित 'पतंग' फिल्म का एक गीत, जो एक नेत्रहीन युवती पर फिल्माया गया है, भी उल्लेखनीय है। चित्रगुप्त ने लता जी के साथ कई मधुर गीत रचे हैं। उनकी जोड़ी ने सिने संगीत में एक अद्वितीय स्थान बनाया है।
चित्रगुप्त की सरल धुनें और अच्छे गीतकारों के साथ काम करने की उनकी क्षमता ने उन्हें एक विशेष स्थान दिलाया। संगीत की इस परंपरा को याद करना, लता, चित्रगुप्त और राजेंद्र कृष्ण की रचनाओं के माध्यम से जुड़ना है।
रंग दिल की धड़कन भी लाती तो होगी
याद मेरी उनको भी आती तो होगी
प्यार की खुशबू कहाँ आती थी कलियों से
हो के आई है हवा भी उनकी गलियों से
छू के उनके दामन को आती तो होगी
रंग दिल की धड़कन भी लाती तो होगी