शिवराज सिंह चौहान ने आपातकाल के अनुभव साझा किए

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आपातकाल के दौरान अपने अनुभवों को साझा किया, जिसमें उन्होंने जेल में हुए अमानवीय अत्याचारों का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने तानाशाही के खिलाफ आवाज उठाई और लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघर्ष किया। चौहान ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वह संविधान की हत्यारी है और लोकतंत्र का अपमान करती है। उनका यह बयान आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि वे आपातकाल की क्रूरता को याद करने की आवश्यकता पर जोर देते हैं।
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शिवराज सिंह चौहान ने आपातकाल के अनुभव साझा किए

आपातकाल के दौरान के अनुभव

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आपातकाल के समय के अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि उन्होंने जेल में कई अमानवीय अत्याचार देखे। उन्होंने बताया कि यह लोकतंत्र का एक काला दौर था, और आज भी उन्हें इस बात पर आश्चर्य होता है कि ऐसा कैसे संभव हुआ। चौहान ने कहा कि उस समय उनकी उम्र 16 वर्ष थी और वे 10वीं कक्षा के छात्र थे। 1974 में महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और शिक्षा व्यवस्था की खामियों के खिलाफ लोकनायक जयप्रकाश नारायण का आंदोलन चल रहा था, जिसमें वे सक्रिय रूप से शामिल थे।


उन्होंने आगे कहा कि वे 'आपातकाल हटाओ' और 'इंदिरा तेरी तानाशाही नहीं चलेगी' के पर्चे बांटते थे। आपातकाल के अंतिम नौ महीनों में, 9 अप्रैल को पुलिस को उनके गतिविधियों की जानकारी मिली। पुलिस ने उनके घर पर छापा मारा, उन्हें थप्पड़ मारे और अपशब्द कहे। उन्हें सीढ़ियों से खींचकर ले जाया गया और पुलिस स्टेशन में प्रताड़ित किया गया।


चौहान ने बताया कि जब उन्हें हथकड़ी लगाकर जेल ले जाया जा रहा था, तो रास्ते में कुछ बच्चों ने उन्हें चोर समझा। इस पर उन्होंने नारे लगाना शुरू किया कि 'ज़ुल्म के आगे नहीं झुकूंगा, ज़ुल्म किया तो और लड़ूंगा'। जब वे भोपाल सेंट्रल जेल पहुंचे, तो उन्होंने बाहर से नारे लगाए और जेल के अंदर बंद लोग भी उनके साथ नारे लगाने लगे। उन्होंने उस समय यह ठान लिया कि वे अपने लिए नहीं, बल्कि देश और समाज के लिए कुछ करेंगे।


उन्होंने यह भी कहा कि देश को आपातकाल की क्रूरता को कभी नहीं भूलना चाहिए, इसलिए संविधान हत्या दिवस मनाना आवश्यक है। चौहान ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वह संविधान की हत्यारी है और तानाशाही उनके DNA में है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र का अपमान करने वाली कांग्रेस को देश से माफी मांगनी चाहिए।