शंकराचार्य का धर्मनिरपेक्षता पर विवादास्पद बयान

शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में एक विवादास्पद बयान दिया है। उन्होंने कहा कि यह शब्द संविधान का मूल हिस्सा नहीं था और इसे बाद में जोड़ा गया। उनके अनुसार, धर्मनिरपेक्षता का अर्थ सही और गलत से कोई संबंध न होना है, जो किसी के जीवन में संभव नहीं है। इस बयान पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ भी आई हैं, जिसमें कांग्रेस ने आलोचना की है जबकि कुछ नेताओं ने समर्थन किया है। जानें इस मुद्दे पर और क्या कहा गया है।
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शंकराचार्य का धर्मनिरपेक्षता पर विवादास्पद बयान

धर्मनिरपेक्षता पर शंकराचार्य का दृष्टिकोण

गुरुवार को शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज ने भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि यह शब्द संविधान के प्रारंभिक पाठ का हिस्सा नहीं था और इसे बाद में जोड़ा गया। उनके अनुसार, यह शब्द संविधान की मूल भावना के अनुरूप नहीं है, जिसके कारण यह अक्सर बहस का विषय बनता है। स्वामी ने समाचार एजेंसी से कहा कि संविधान में धर्मनिरपेक्षता का उल्लेख नहीं था, और इसे बाद में जोड़ा गया, जिससे यह संविधान की प्रकृति के अनुकूल नहीं है।


 


अविमुक्तेश्वरानंद महाराज ने यह भी स्पष्ट किया कि धर्म का अर्थ सही और गलत के बीच चयन करना है। उन्होंने कहा, "धर्मनिरपेक्षता का मतलब है कि हमें सही या गलत से कोई सरोकार नहीं है, जो किसी के जीवन में संभव नहीं है। इसलिए यह शब्द भी सही नहीं है।" उन्होंने बताया कि ये शब्द आपातकाल के दौरान संविधान में जोड़े गए थे और ये बीआर अंबेडकर द्वारा तैयार किए गए मूल पाठ का हिस्सा नहीं थे।


 


कांग्रेस के नेताओं ने इस टिप्पणी पर भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस की आलोचना की है, जबकि उपाध्यक्ष जगदीप धनखड़ और केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस मांग का समर्थन किया है। सीपीआई सांसद पी संदोष कुमार ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को पत्र लिखकर पूछा कि क्या संगठन वास्तव में भारतीय संविधान को मानता है। उन्होंने यह भी कहा कि अब समय आ गया है कि आरएसएस इन बहसों को भड़काना बंद करे, क्योंकि ये शब्द "मनमाने ढंग से डाले गए" नहीं बल्कि आधारभूत आदर्श हैं।