विराट कोहली ने भाई को सौंपा 80 करोड़ का बंगला, जानें पावर ऑफ अटॉर्नी के बारे में

विराट कोहली का नया कदम

विराट कोहली
भारतीय क्रिकेट के सितारे विराट कोहली ने अपने गुरुग्राम स्थित भव्य बंगले की देखरेख का जिम्मा अपने बड़े भाई विकास को सौंप दिया है। इसके लिए उन्होंने एक कानूनी दस्तावेज तैयार किया है, जिसे पावर ऑफ अटॉर्नी कहा जाता है। विराट, जो लंदन में अपनी पत्नी अनुष्का शर्मा और बच्चों के साथ रहते हैं, बार-बार भारत नहीं आ पाते हैं। इस कारण उन्होंने अपने भाई को अधिकार दिए हैं ताकि वह उनकी संपत्ति से संबंधित सभी कार्य सुचारू रूप से कर सकें।
उनका बंगला लगभग 80 करोड़ रुपये का आंका गया है, जिसमें एक फ्लैट भी शामिल है। पावर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से विकास कोहली को यह अधिकार प्राप्त हो गया है कि वह इस संपत्ति से जुड़ी किसी भी कानूनी या सरकारी प्रक्रिया को संभाल सकें। इससे विराट को बार-बार भारत आने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और विकास को सभी कार्य करने की अनुमति मिल गई है।
पावर ऑफ अटॉर्नी की परिभाषा
पावर ऑफ अटॉर्नी एक कानूनी दस्तावेज है, जिसमें एक व्यक्ति (जिसे प्रिंसिपल कहा जाता है) किसी अन्य व्यक्ति (जिसे एजेंट या अटॉर्नी कहा जाता है) को अपनी ओर से विशेष या सामान्य कार्य करने की अनुमति देता है। यह अधिकार संपत्ति, बैंकिंग कार्य या किसी भी प्रकार के कानूनी कार्यों से संबंधित हो सकता है।
जब प्रिंसिपल पावर ऑफ अटॉर्नी जारी करता है, तो एजेंट को उस संपत्ति या कार्य को संभालने का पूरा अधिकार मिल जाता है, जैसे कि वह स्वयं मालिक हो। इसका अर्थ है कि एजेंट द्वारा लिए गए निर्णय प्रिंसिपल के लिए मान्य होते हैं।
पावर ऑफ अटॉर्नी के प्रकार
पावर ऑफ अटॉर्नी मुख्यतः दो प्रकार की होती है। पहली है जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी, जिसमें एजेंट को प्रिंसिपल के सभी कार्य करने की अनुमति होती है। इसका मतलब है कि एजेंट मालिक की ओर से कोई भी निर्णय ले सकता है।
दूसरी प्रकार है स्पेशल या सीमित पावर ऑफ अटॉर्नी, जिसमें एजेंट को केवल किसी विशेष कार्य के लिए अधिकार दिया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि आपको किसी एक संपत्ति को बेचना या खरीदना है, तो आप एजेंट को केवल उसी कार्य के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी दे सकते हैं।
पावर ऑफ अटॉर्नी बनाने की प्रक्रिया
पावर ऑफ अटॉर्नी बनाने के लिए एक नॉन-ज्यूडिशियल स्टाम्प पेपर (जिसकी कीमत 100 रुपये होती है) पर दस्तावेज तैयार किया जाता है। इसके बाद इसे नोटराइज करना आवश्यक होता है, ताकि यह कानूनी रूप से मान्य हो सके। इस दस्तावेज में दोनों पक्षों के हस्ताक्षर और दो गवाहों के सिग्नेचर भी जरूरी होते हैं।
जब यह प्रक्रिया पूरी हो जाती है, तो एजेंट को प्रिंसिपल की ओर से कार्य करने का अधिकार मिल जाता है। इससे बाद में किसी भी विवाद या समस्या का सामना नहीं करना पड़ता, क्योंकि यह एक आधिकारिक दस्तावेज होता है।