विद्या भारती की शैक्षिक संगोष्ठी में भारतीय संस्कृति का महत्व

विद्या भारती ने नई दिल्ली में एक महत्वपूर्ण शैक्षिक संगोष्ठी का आयोजन किया, जिसमें भारतीय संस्कृति और नई शिक्षा नीति के महत्व पर चर्चा की गई। इस कार्यक्रम में कई प्रमुख शिक्षाविद् और विशिष्ट अतिथि शामिल हुए, जिन्होंने भारतीय शिक्षा प्रणाली में सुधार और संस्कृति के जागरण पर अपने विचार साझा किए। संगोष्ठी में उपस्थित शिक्षकों ने भारत को विश्वगुरु बनाने का संकल्प लिया।
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विद्या भारती की शैक्षिक संगोष्ठी में भारतीय संस्कृति का महत्व

विद्या भारती का उद्देश्य और संगोष्ठी का आयोजन

नई दिल्ली। विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान, जो भारत का सबसे बड़ा गैर-सरकारी शिक्षा संगठन है, का मुख्य लक्ष्य भारतीय मूल्यों और संस्कृति के अनुरूप राष्ट्र निर्माण के लिए युवाओं को शिक्षित करना है। यह संगठन प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक 13,000 से अधिक औपचारिक और 10,000 से अधिक अनौपचारिक शिक्षण संस्थान संचालित करता है, जिसमें 30 लाख से अधिक छात्र संस्कारयुक्त शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।




इस संदर्भ में, विद्या भारती उत्तर क्षेत्र ने एकदिवसीय शैक्षिक संगोष्ठी का आयोजन किया, जो युगाब्द 5127, विक्रम संवत 2082, आश्विन कृष्ण अमावस्या, 21 सितम्बर 2025, रविवार को तेरापंथ भवन, छत्तरपुर, नई दिल्ली में हुआ।




कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलन और वंदना से हुई। इस अवसर पर पूज्या साध्वी डॉ. अमृता दीदी जी और डॉ. कुंदन रेखा जी का सान्निध्य प्राप्त हुआ। संगोष्ठी में विद्या भारती के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री डी. रामकृष्ण राव, सह संगठन मंत्री श्रीराम जी आरावकर, महामंत्री श्री देशराज शर्मा, उत्तर क्षेत्र के अध्यक्ष श्री सुखराज सेठिया, संगठन मंत्री श्री विजय नड्डा, महामंत्री श्री दिलाराम चौहान, दिल्ली प्रांत के महामंत्री डॉ. सतीश महेश्वरी और नेपाल के पूर्व राष्ट्रपति श्री राम बरन यादव सहित कई विशिष्ट अतिथि और विद्वान उपस्थित रहे।




सभी अतिथियों और प्रतिभागियों का स्वागत एवं परिचय उत्तर क्षेत्र के महामंत्री श्री दिलाराम चौहान ने कराया।




श्री डी. रामकृष्ण राव ने संगोष्ठी के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सभी संस्थानों का दायित्व है कि वे मिलकर नई शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन में सहयोग करें और भारत-केंद्रित शिक्षा के माध्यम से देश को नई दिशा प्रदान करें। पूज्या साध्वी अमृता दीदी और डॉ. कुंदन रेखा जी ने अपने आशीर्वचन में भारतीय संस्कृति के जागरण और सनातन परंपराओं के बोध हेतु प्रेरित किया।




नेपाल के पूर्व राष्ट्रपति श्री राम बरन यादव ने अपने संबोधन में प्राचीन भारतीय गुरुकुल शिक्षा पद्धति की उपयोगिता और वर्तमान समय में उसकी प्रासंगिकता पर विचार प्रस्तुत किए। श्री देशराज शर्मा ने शिक्षा प्रणाली में सुधार हेतु आचार्यों के प्रशिक्षण पर विशेष बल दिया। चिन्मय मिशन की अम्मा जी ने वैदिक संस्कृति को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।




संगोष्ठी में विभिन्न प्रांतों से आए 32 शिक्षण संस्थानों के लगभग 60 शिक्षाविद् और विद्वतजन शामिल हुए और “ॐ ध्वनि” के माध्यम से परस्पर सहयोग की भावना व्यक्त करते हुए भारत को विश्वगुरु बनाने का संकल्प लिया। कार्यक्रम का समापन शांति मंत्र के साथ हुआ। समस्त व्यवस्थाएँ विद्या भारती दिल्ली प्रांत की टोली द्वारा संचालित की गईं। कार्यक्रम की सफलता हेतु महामंत्री डॉ. सतीश महेश्वरी ने सभी कार्यकर्ताओं को साधुवाद ज्ञापित किया।