वाघ बकरी चाय: भारतीय चाय उद्योग का एक प्रतिष्ठित नाम

वाघ बकरी चाय का इतिहास

‘वाघ बकरी चाय’ एक प्रसिद्ध चाय ब्रांड है, जिसे देशभर में करोड़ों लोग पसंद करते हैं। इसकी स्थापना 1934 में नारनदास देसाई ने की थी, जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका से गुजरात लौटकर इस व्यापार की शुरुआत की। नारनदास ने दक्षिण अफ्रीका में चाय के लिए 500 एकड़ का बागान खरीदा था, लेकिन रंगभेद और अंग्रेज़ी शासन के कारण उन्हें भारत वापस लौटना पड़ा।
महात्मा गांधी का समर्थन
नारनदास देसाई महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानते थे। भारत लौटने पर उनके पास गांधी जी द्वारा लिखी गई एक चिट्ठी थी, जो उनके व्यापार के लिए सहायक साबित हुई। इस पत्र में गांधी जी ने नारनदास की प्रशंसा की थी और उनके चाय बागान के अनुभव का उल्लेख किया था।
गुजरात टी डिपो कंपनी की स्थापना
1915 में भारत लौटने के बाद, नारनदास ने गुजरात टी डिपो कंपनी की स्थापना की। 1934 में इस कंपनी का नाम ‘वाघ बकरी’ रखा गया, और यह धीरे-धीरे पूरे देश में लोकप्रिय हो गई।
लोगो का महत्व
नारनदास की कंपनी का लोगो अनोखा था, जिसमें एक बाघ और एक बकरी एक प्याली से चाय पीते हुए दिखाए गए थे। यह लोगो सामाजिक एकता का प्रतीक है, जिसमें बाघ उच्च वर्ग और बकरी निम्न वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है।
वर्तमान स्थिति
वाघ बकरी चाय आज 15 चाय लाउंज का संचालन करती है और इसके उत्पाद अमेरिका, कनाडा, यूरोप, और अन्य देशों में भी बेचे जाते हैं। मार्च 2021 तक, कंपनी की कुल बिक्री में निर्यात का योगदान 5% था। वर्तमान में, यह ब्रांड 1,500 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार करता है और 40 मिलियन किलोग्राम चाय पत्तियों का वितरण करता है।
कर्मचारियों की संख्या
इस कंपनी में लगभग पांच हजार लोग कार्यरत हैं, और यह भारत के प्रमुख चाय ब्रांडों में से एक बन चुकी है।
वाघ बकरी चाय का विस्तार

राजस्थान से लेकर कर्नाटक तक, वाघ बकरी चाय का सेवन पूरे भारत में किया जाता है।