लालू यादव: संघर्ष से सत्ता तक की अद्भुत यात्रा

लालू यादव की कहानी एक साधारण युवा से लेकर बिहार के मुख्यमंत्री बनने तक की है। उनका सफर खाकी पहनने के सपने से शुरू हुआ, लेकिन किस्मत ने उन्हें राजनीति की ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया। जानें कैसे उन्होंने गरीबों और पिछड़ों के लिए आवाज उठाई और अपनी अनोखी शैली से लोगों के दिलों में जगह बनाई। इस लेख में उनके संघर्ष, विवाद और राजनीतिक सफर के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है।
 | 
लालू यादव: संघर्ष से सत्ता तक की अद्भुत यात्रा

लालू यादव की अनोखी कहानी

लालू यादव: संघर्ष से सत्ता तक की अद्भुत यात्रा

लालू यादव

भारतीय राजनीति में बिहार की एक विशेष पहचान है। यह भूमि सत्ता के उतार-चढ़ाव, आंदोलनों और सामाजिक संघर्षों की गवाह रही है। यहां की जनता के लिए राजनीति केवल सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि सम्मान, पहचान और बदलाव की आवाज है। इस राजनीति ने देश को ऐसे नेता दिए हैं जिन्होंने न केवल बिहार, बल्कि पूरे भारत की दिशा को बदल दिया। जेपी आंदोलन इसी धरती से निकला और इसने कई प्रमुख चेहरों को जन्म दिया, जिनमें नीतीश कुमार, शरद यादव, सुशील मोदी और सबसे प्रमुख लालू प्रसाद यादव शामिल हैं।

लालू यादव की कहानी साधारण नहीं है। यह उस युवा की कहानी है जो पुलिस की खाकी पहनने का सपना लेकर परीक्षा देने गया था, लेकिन किस्मत ने उसे सत्ता की ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया। यह संघर्ष और जुझारूपन की कहानी है, जो लोगों के दिलों को छू लेती है।

गांव में नौकरी का सपना

लालू का जन्म 1948 में गोपालगंज के छोटे से गांव फुलवरिया में हुआ। उनका परिवार साधारण था और घर में सुविधाओं की कमी थी। जैसे अधिकांश ग्रामीण युवा, उनके मन में भी स्थायी नौकरी और सम्मान का सपना था। न तो उन्होंने बचपन में राजनीति का सपना देखा और न ही सोचा था कि एक दिन हजारों की भीड़ उनके भाषण पर ताली बजाएगी।

पटना विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान उनका व्यक्तित्व और बोलने का तरीका लोगों को आकर्षित करता था। उनकी मजाकिया शैली और सादगी ने उन्हें एक दिन भीड़ का नेता बना दिया, यह बात उन्हें खुद नहीं पता थी।

लालू यादव: संघर्ष से सत्ता तक की अद्भुत यात्रा

सिपाही बनने का सपना और राजनीति का सफर

एक समय ऐसा आया जब बिहार पुलिस की भर्ती निकली। लालू की आंखों में खाकी पहनने का सपना चमक उठा। वह परीक्षा देने गए, लेकिन किस्मत ने उन्हें पीछे छोड़ दिया। यह असफलता उनके लिए राजनीति के दरवाजे खोलने वाली साबित हुई।

समाजवादी नेता नरेंद्र सिंह ने उनकी बोलने की कला को पहचाना और उन्हें छात्र राजनीति में लाए। पहली बार जब उन्हें भाषण देना था, वह पुलिस परीक्षा में व्यस्त थे। यहीं से उनकी राजनीतिक यात्रा का एक नया अध्याय शुरू हुआ।

लालू यादव: संघर्ष से सत्ता तक की अद्भुत यात्रा

छात्र राजनीति से मुख्यमंत्री बनने तक

छात्र राजनीति में सक्रिय रहते हुए, 1977 में मात्र 29 वर्ष की आयु में वह लोकसभा के सबसे युवा सांसद बने। इसके बाद 1980 और 1985 में वे बिहार विधानसभा के सदस्य बने और 1989 में विपक्ष के नेता बने। 1990 में लालू यादव ने बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।

मुख्यमंत्री बनने की कहानी

यह विडंबना थी कि जिन लालू को आज बीजेपी के प्रमुख विरोधी के रूप में देखा जाता है, उनकी मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी 1990 में बीजेपी के समर्थन से हुई थी। जब वह पहली बार अपने गांव पहुंचे, तो उनकी मां ने कहा, अब तो तुम्हें सरकारी नौकरी भी नहीं मिली। लालू ने हंसते हुए जवाब दिया, 'क्या यह नौकरी से कम है?'

लालू यादव: संघर्ष से सत्ता तक की अद्भुत यात्रा

गरीबों के नेता और सामाजिक समीकरण

लालू यादव की सबसे बड़ी विशेषता उनकी भाषा और जनता से जुड़ने की क्षमता थी। उन्होंने गरीबों, पिछड़ों और विशेष रूप से यादव-मुस्लिम वर्ग को राजनीतिक मुख्यधारा में आवाज दी। वह खुद को 'गरीबों का नेता' मानते थे, लेकिन जब राजनीति में जातीय आधार प्रमुख होने लगा, तो उनका समर्थन धीरे-धीरे संकुचित होता गया।

विवाद और संघर्ष

लालू यादव के राजनीतिक सफर में चारा घोटाले का अध्याय एक गहरा दाग छोड़ गया। इस मामले में सजा होने के बाद उनकी छवि प्रभावित हुई और सत्ता भी हाथ से चली गई। लेकिन यह सच है कि इतने संघर्षों के बावजूद उनके जनसमर्थन में कमी नहीं आई। आज भी लालू की भीड़ को आकर्षित करने की क्षमता बरकरार है.