लालू प्रसाद यादव का मोदी और शाह पर तीखा हमला, वोटर लिस्ट में धांधली का आरोप

राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव ने बिहार में वोटर लिस्ट की जांच को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि ये दोनों नेता 8 करोड़ बिहारी मतदाताओं का अधिकार छीनने की कोशिश कर रहे हैं। तेजस्वी यादव ने भी इस प्रक्रिया को एक गहरी साजिश बताया है। मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है, जहां इसकी सुनवाई 10 जुलाई को होगी। जानें इस राजनीतिक विवाद की पूरी कहानी।
 | 
लालू प्रसाद यादव का मोदी और शाह पर तीखा हमला, वोटर लिस्ट में धांधली का आरोप

बिहार में वोटर लिस्ट की जांच पर विवाद


पटना, 7 जुलाई: राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह पर बिहार में चल रही वोटर लिस्ट की जांच को लेकर तीखा हमला किया।


सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लालू प्रसाद ने लिखा, “दो गुजराती 8 करोड़ बिहारी लोगों के वोट का अधिकार छीनने की कोशिश कर रहे हैं। ये दोनों गुजराती बिहार, संविधान और लोकतंत्र से नफरत करते हैं। जागो और आवाज उठाओ! लोकतंत्र और संविधान को बचाओ।”


बिहार विधानसभा चुनावों से पहले वोटर लिस्ट की समीक्षा ने एक बड़ा राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है, जिसमें विपक्ष केंद्र, बिहार सरकार और चुनाव आयोग पर आरोप लगा रहा है कि वे करोड़ों मतदाताओं के नाम हटाने की साजिश कर रहे हैं ताकि चुनावों में धांधली की जा सके।


विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने भी X पर इस प्रक्रिया को “गहरी साजिश” करार दिया, जिससे बिहार के मतदाताओं को वंचित किया जा रहा है।


तेजस्वी ने लिखा, “बिहार में वोट बैन की गहरी साजिश। दलितों, ओबीसी और अल्पसंख्यकों के वोट काटने और फर्जी वोट जोड़ने का खेल शुरू हो गया है। यह बिहार में वोट बंदी को लागू करने की सबसे गहरी साजिश है।”


उन्होंने आगे आरोप लगाया कि “मोदी-नीतीश चुनाव आयोग के माध्यम से काम कर रहे हैं, जो संविधान और लोकतंत्र को कुचलने और आपके वोट के अधिकार को छीनने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं। ये लोग अब अपनी सीधी हार देखकर परेशान हैं। जब मतदाता का वोट समाप्त हो जाएगा, तो लोकतंत्र और संविधान का क्या उपयोग?”


यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है, जहां वोटर लिस्ट की समीक्षा के खिलाफ कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिन्हें असंवैधानिक और जनविरोधी बताया गया है, और लाखों नामों को हटाने से रोकने के लिए तत्काल हस्तक्षेप की मांग की गई है।


सोमवार को वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में मामले का उल्लेख किया और तात्कालिक सुनवाई की मांग की।


सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई के लिए 10 जुलाई, गुरुवार को सहमति दी है।