रेलवे के किलोमीटर नंबर: ट्रेन संचालन में महत्वपूर्ण जानकारी

रेलवे की पटरियों पर अंकित किलोमीटर नंबर का महत्व जानें। यह नंबर न केवल लोको पायलट के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि आम नागरिकों के लिए भी उपयोगी साबित होते हैं। जानें कैसे ये नंबर ट्रेन की गति को नियंत्रित करने और सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद करते हैं। यदि आपका सामान खो गया है, तो आप इन नंबरों का उपयोग करके रेलवे अधिकारियों से सहायता भी मांग सकते हैं।
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रेलवे के किलोमीटर नंबर: ट्रेन संचालन में महत्वपूर्ण जानकारी

किलोमीटर नंबर का महत्व


रेलवे की पटरियों के किनारे अंकित नंबर वास्तव में किलोमीटर नंबर होते हैं। जब किसी स्टेशन पर या दो स्टेशनों के बीच कोई कार्य चल रहा होता है, तो ट्रेन के लोको पायलट को गति सीमित करने और सतर्क रहने का निर्देश दिया जाता है।


इस प्रक्रिया में, जिस खंभे पर कार्य हो रहा है, उसका किलोमीटर नंबर लिखा जाता है। लोको पायलट इस निर्देश का पालन करते हुए ट्रेन की गति को धीमा कर देते हैं।


जब सीमेंट या कंक्रीट से खंभे बनाए जाते हैं, तो उन पर भी किलोमीटर नंबर अंकित होता है। रेलवे की तकनीकी भाषा में इसे मास्ट कहा जाता है। दो मास्ट के बीच की दूरी लगभग 60 मीटर हो सकती है, और यदि पटरियों में मोड़ है, तो यह दूरी कम भी हो सकती है।


यदि ट्रेन के संचालन के दौरान पटरियों में कोई समस्या आती है, तो यह गंभीर स्थिति उत्पन्न कर सकती है, जिससे रेलवे दुर्घटना का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए, लोको पायलट इन नंबरों के माध्यम से पटरियों की स्थिति की जानकारी देते हैं।


यदि किसी ट्रेन का इंजन खराब हो जाता है या अन्य कारणों से ट्रेन आगे नहीं बढ़ पाती, तो रेलवे के अधिकारी को ट्रेन के गार्ड द्वारा किलोमीटर नंबर बताकर सहायता मांगी जाती है। यह नंबर कई अन्य कार्यों में भी सहायक होते हैं।


किलोमीटर नंबर का लाभ केवल लोको पायलट को ही नहीं, बल्कि आम नागरिकों को भी होता है। यदि किसी का महत्वपूर्ण सामान चोरी हो गया है या गिर गया है, तो वे रेलवे अधिकारियों को किलोमीटर नंबर बताकर मदद मांग सकते हैं।