राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा: जम्मू-कश्मीर में जलविद्युत परियोजना में संदिग्ध कर्मचारी
राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाओं की सुरक्षा
रणनीतिक महत्व की परियोजनाएँ हमेशा उच्च जोखिम में होती हैं। ये दुश्मन देशों की निगाहों में रहती हैं और आतंकवादी संगठनों के निशाने पर होती हैं, इसलिए इनकी सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होती है। हालाँकि, जब इन परियोजनाओं को आंतरिक खतरे का सामना करना पड़ता है, तो स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। यह चिंता तब बढ़ जाती है जब किसी राष्ट्रीय महत्व की परियोजना में ऐसे लोग शामिल हों जिनका संबंध आतंकवादी गतिविधियों या आपराधिक पृष्ठभूमि से हो। यह केवल प्रशासनिक गलती नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ सीधा खिलवाड़ है।
जम्मू-कश्मीर पुलिस का पत्र
जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड को भेजा गया पत्र इस गंभीर स्थिति को उजागर करता है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, 1 नवंबर को पुलिस ने मेघा इंजीनियरिंग को चेतावनी दी थी कि किश्तवाड़ के द्राबशल्ला क्षेत्र में चल रही 850 मेगावाट की रतले जलविद्युत परियोजना में काम कर रहे 29 कर्मचारियों के आतंकवादी संबंध हो सकते हैं। यह पत्र किश्तवाड़ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक नरेश सिंह द्वारा लिखा गया था, जिसमें कहा गया था कि स्थानीय कर्मचारियों का पुलिस सत्यापन किया गया और उनमें से 29 लोग विध्वंसक गतिविधियों में शामिल पाए गए।
संदिग्ध कर्मचारियों की पहचान
पत्र में यह भी बताया गया कि जलविद्युत परियोजनाएँ राष्ट्रीय महत्व की होती हैं और दुश्मन देशों के लिए उच्च जोखिम का लक्ष्य बन सकती हैं। पुलिस ने मेघा इंजीनियरिंग को सलाह दी कि इन कर्मचारियों की नियुक्ति पर पुनर्विचार किया जाए और उनकी गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखी जाए। रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि इनमें से पांच कर्मचारियों के आतंकवादी संपर्क हैं, जिनमें एक कुख्यात आतंकवादी के रिश्तेदार और एक आत्मसमर्पित आतंकवादी का बेटा शामिल है।
राजनीतिक विवाद
इस मामले ने तब और तूल पकड़ा जब किश्तवाड़ से भाजपा विधायक शगुन परिहार ने कहा कि पुलिस का पत्र उनके पहले के आरोपों की पुष्टि करता है। विवाद तब शुरू हुआ जब मेघा इंजीनियरिंग के मुख्य परिचालन अधिकारी हरपाल सिंह ने विधायक पर परियोजना में देरी का आरोप लगाया। हरपाल सिंह ने स्वीकार किया कि उन्हें पुलिस का पत्र मिला है और कंपनी ने आश्वासन दिया है कि वह संदिग्ध गतिविधियों पर नजर रखेगी।
रतले परियोजना की स्थिति
रतले परियोजना, जिसकी लागत लगभग 3,700 करोड़ रुपये है और इसे सितंबर 2026 तक पूरा किया जाना है, पहले ही दो साल की देरी का सामना कर चुकी है। हरपाल सिंह का आरोप है कि विधायक के हस्तक्षेप के कारण परियोजना बाधित हो रही है। वहीं, शगुन परिहार ने इन आरोपों को गैर-जिम्मेदाराना बताया है।
राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल
रतले जलविद्युत परियोजना का विवाद केवल 29 कर्मचारियों की नियुक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जम्मू-कश्मीर में विकास, सुरक्षा और राजनीति के जटिल संबंधों को उजागर करता है। सवाल यह है कि क्या राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े प्रोजेक्ट में संदेह के लाभ की कोई गुंजाइश होनी चाहिए? पुलिस ने चेतावनी दी है कि परियोजना की सुरक्षा खतरे में है, जबकि कंपनी कानूनी तकनीकों का हवाला देकर अपनी जिम्मेदारी से बच रही है।
कंपनी का तर्क
कंपनी का तर्क कि जब तक अदालत दोषी न ठहराए, तब तक कुछ नहीं किया जा सकता, सुनने में भले ही लोकतांत्रिक लगे, लेकिन यह वास्तविकता में घातक लापरवाही है। राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाएँ साधारण फैक्ट्रियों की तरह नहीं होतीं; यहां एक छोटी सी चूक भी बड़े विध्वंस का कारण बन सकती है।
