राष्ट्रीय एकता दिवस: सरदार पटेल की विरासत और मोदी का दृष्टिकोण
31 अक्टूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने सरदार पटेल की 150वीं जयंती पर विचार साझा किए। उन्होंने पटेल की विरासत और वर्तमान राजनीतिक संदर्भ में उनकी भूमिका पर चर्चा की। समारोह में ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ के महत्व को भी उजागर किया गया। मोदी ने एकता की शपथ दिलाई और सुरक्षा के मुद्दों पर भी बात की। जानें इस दिन का महत्व और मोदी का दृष्टिकोण क्या है।
| Oct 31, 2025, 14:47 IST
राष्ट्रीय एकता दिवस का महत्व
31 अक्टूबर का दिन केवल राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में नहीं, बल्कि उस विचारधारा के पुनर्स्थापन का प्रतीक भी है जिसने स्वतंत्र भारत के स्वरूप को आकार दिया। आज के दिन, गुजरात के एकता नगर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा, “पटेल कश्मीर के भारत में विलय के पक्षधर थे, लेकिन नेहरू ने इसे रोक दिया।” यह बयान न केवल इतिहास की एक नई व्याख्या है, बल्कि समकालीन राजनीति में भारत की ‘पूर्ण एकता’ के दृष्टिकोण को भी दर्शाता है।
मोदी का ऐतिहासिक संदर्भ
मोदी ने ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ परिसर में आयोजित परेड में कहा कि “कांग्रेस की गलतियों का खामियाजा देश ने वर्षों तक भुगता।” यह टिप्पणी एक ऐतिहासिक आलोचना के साथ-साथ वर्तमान राजनीतिक विमर्श को भी प्रभावित करती है। सरदार पटेल का नाम मोदी सरकार के लिए केवल ऐतिहासिक धरोहर नहीं, बल्कि वर्तमान भारत की वैचारिक धुरी भी है। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि “हमने 2014 से नक्सलवाद और माओवाद पर निर्णायक प्रहार किया है और अब घुसपैठ के खिलाफ अंतिम लड़ाई लड़ेंगे।” इस घोषणा ने समारोह को केवल स्मृति का अवसर नहीं, बल्कि सुरक्षा और राष्ट्र-एकता के आधुनिक एजेंडे से जोड़ दिया।
एकता दिवस समारोह की विशेषताएँ
इस वर्ष का राष्ट्रीय एकता दिवस समारोह गणतंत्र दिवस परेड की तर्ज पर आयोजित किया गया। यह दिखाता है कि ‘एकता’ अब केवल एक भावनात्मक अवधारणा नहीं, बल्कि शक्ति, अनुशासन और आत्मगौरव का आयोजन बन चुकी है। महिला अधिकारियों की अगुवाई में निकली अर्द्धसैनिक टुकड़ियाँ, बीएसएफ और सीआरपीएफ के वीरता पदक विजेताओं का सम्मान, और भारतीय नस्ल के श्वानों का प्रदर्शन, सभी मिलकर उस भारत की झलक देते हैं जो आत्मनिर्भर, अनुशासित और आत्मविश्वासी है।
एकता की शपथ
प्रधानमंत्री द्वारा दिलाई गई “एकता की शपथ” ने इस आयोजन को जनभागीदारी का स्वरूप दिया। इस शपथ में “राष्ट्र की अखंडता, एकता और सुरक्षा बनाए रखने की प्रतिबद्धता” की पुनः पुष्टि की गई। 182 मीटर ऊँची ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ केवल एक प्रतिमा नहीं, बल्कि उस राजनीतिक दृष्टि का प्रतीक है जिसमें राष्ट्रीय गौरव, सांस्कृतिक आत्मविश्वास और ऐतिहासिक पुनर्पाठ, तीनों का समावेश है।
दिल्ली में 'रन फॉर यूनिटी'
दिल्ली में आयोजित ‘रन फॉर यूनिटी’ में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि “प्रधानमंत्री मोदी ने अनुच्छेद 370 हटाकर सरदार पटेल के अधूरे कार्य को पूरा किया।” शाह की यह टिप्पणी राजनीतिक विमर्श में महत्वपूर्ण है। यह दर्शाती है कि वर्तमान सत्तारूढ़ नेतृत्व खुद को पटेल की विचारधारा का उत्तराधिकारी मानता है। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस ने पटेल को वह सम्मान नहीं दिया जिसके वे अधिकारी थे; उनके नाम पर कोई स्मारक नहीं बनाया गया, और भारत रत्न देने में भी 41 वर्ष की देरी हुई। अमित शाह ने ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ को “देशी इंजीनियरिंग का चमत्कार” बताते हुए कहा कि 25,000 टन लोहे और 1,700 टन कांसे से निर्मित यह स्मारक अब तक 2.5 करोड़ से अधिक पर्यटकों को आकर्षित कर चुका है। यह न केवल पर्यटन का केंद्र है, बल्कि ‘राष्ट्र निर्माण की कहानी’ का दृश्य प्रतीक भी है।
सरदार पटेल की विरासत
सरदार पटेल की विरासत केवल एक स्मारक या मूर्ति तक सीमित नहीं है। दिल्ली का ‘पटेल चौक’, ‘पटेल भवन’, ‘पटेल मार्ग’ और ‘पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट’, सभी इस लौह पुरुष की स्थायी उपस्थिति का प्रतीक हैं। केरल का पुलिस संग्रहालय, जो पटेल के नाम पर है, भारतीय कानून प्रवर्तन के इतिहास को जीवंत करता है। उनके नाम से जुड़े ये स्थल बताते हैं कि भारत के संघीय ढांचे की आत्मा में पटेल अब भी जीवित हैं।
मोदी युग और पटेल का प्रतीक
मोदी युग का भारत सरदार पटेल को एक विचारधारात्मक प्रतीक के रूप में प्रस्तुत कर रहा है— जो राष्ट्र की एकता, सुरक्षा और आत्मगौरव की त्रयी का प्रतिनिधित्व करते हैं। वास्तव में, आज के समारोह उस ऐतिहासिक निरंतरता का संकेत है जिसमें भारत अपने अतीत को स्मरण कर भविष्य का दर्शन करता है। 31 अक्टूबर 2025 को केवड़िया से लेकर दिल्ली तक एक ही संदेश गूंजा— “विभिन्नता में एकता नहीं, बल्कि एकता में विविधता ही भारत की वास्तविक शक्ति है।”
