राधाकृष्णन ने उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ ली, धनखड़ की वापसी ने बढ़ाई राजनीतिक हलचल
चंद्रपुरम पोन्नुसामी राधाकृष्णन ने भारत के 15वें उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। इस समारोह में जगदीप धनखड़ की वापसी ने राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है। धनखड़ का इस्तीफा स्वास्थ्य कारणों से जोड़ा गया था, लेकिन उनकी सक्रियता ने सवाल उठाए हैं। क्या वे भाजपा में वापसी करेंगे या स्वतंत्र रूप से राजनीति में अपनी पहचान बनाएंगे? जानें इस महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम के बारे में।
Sep 12, 2025, 11:58 IST
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उपराष्ट्रपति के रूप में राधाकृष्णन की शपथ
चंद्रपुरम पोन्नुसामी राधाकृष्णन ने आज भारत के 15वें उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण किया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार को राष्ट्रपति भवन में एक संक्षिप्त समारोह में 67 वर्षीय राधाकृष्णन को शपथ दिलाई। लाल कुर्ता पहने राधाकृष्णन ने ईश्वर के नाम पर अंग्रेजी में शपथ ली। इस समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, कई राज्यों के मुख्यमंत्री, राज्यपाल, केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भी उपस्थित थे। पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, वेंकैया नायडू और जगदीप धनखड़ ने भी इस समारोह में भाग लिया। धनखड़, जिन्होंने उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दिया था, पहली बार सार्वजनिक रूप से नजर आए। उनकी उपस्थिति ने नई राजनीतिक चर्चाओं को जन्म दिया है, जिससे राधाकृष्णन की शपथ से अधिक चर्चा जगदीप धनखड़ की वापसी पर केंद्रित रही।
धनखड़ की वापसी और राजनीतिक भविष्य
धनखड़ का इस्तीफा औपचारिक रूप से 'स्वास्थ्य कारणों' से जोड़ा गया था, लेकिन समारोह में उनकी सक्रियता ने इस तर्क को कमजोर कर दिया है। यह सवाल उठता है कि यदि उनकी सेहत ठीक है, तो इस्तीफे की असली वजह क्या थी? क्या यह भाजपा नेतृत्व से मतभेद का परिणाम था? जगदीप धनखड़ का राजनीतिक अंदाज़ हमेशा से टकराव और तीखे तेवर का रहा है। वकील की पृष्ठभूमि से आने वाले धनखड़ ने संसद में भी कानूनी धार और बहस की शैली को बनाए रखा। उपराष्ट्रपति रहते हुए उन्होंने विपक्ष को कठघरे में खड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन कई मौकों पर सरकार से भी उनकी दूरी और असहमति स्पष्ट हुई। यही कारण है कि उनका व्यक्तित्व भाजपा के भीतर कभी 'सशक्त पक्षधर' और कभी 'मुश्किल सहकर्मी' के रूप में देखा गया।
धनखड़ का राजनीतिक सफर
उनकी आक्रामकता और बेबाकी उन्हें विशिष्ट बनाती है, लेकिन यह शैली सत्ता की राजनीति में लंबे समय तक सबको सहज नहीं कर पाती। शायद यही कारण रहा कि उनका कार्यकाल बीच में ही रुक गया। शपथ समारोह में धनखड़ भाजपा नेताओं से मिले, लेकिन पुरानी आत्मीयता का अभाव था। यह संकेत साफ है कि उनके संबंधों में दरार बनी हुई है। अब सवाल यह है कि उनका राजनीतिक भविष्य किस दिशा में जाएगा?
भविष्य की संभावनाएँ
धनखड़ के पास अनुभव और पहचान दोनों हैं। यदि वे भाजपा में वापसी की कोशिश करते हैं, तो संभव है कि वे सफल हों। लेकिन यदि दूरी बनी रहती है, तो वे एक स्वतंत्र और वैचारिक चेहरा बनकर भारतीय राजनीति में अपनी भूमिका तलाश सकते हैं। विपक्ष के लिए भी वे 'सत्ता से असहमति जताने वाले संवैधानिक पदाधिकारी' की छवि के चलते उपयोगी साबित हो सकते हैं।
धनखड़ की वापसी का महत्व
जगदीप धनखड़ का सार्वजनिक जीवन से गायब होना जितना रहस्यमय था, उनकी वापसी भी उतनी ही चर्चित रही। उनकी उपस्थिति ने यह स्पष्ट कर दिया कि उनका राजनीतिक सफर समाप्त नहीं हुआ है। आगे का रास्ता इस बात पर निर्भर करेगा कि वे भाजपा नेतृत्व के साथ तालमेल बैठाते हैं या स्वतंत्र मार्ग चुनते हैं। लेकिन यह निश्चित है कि उनकी बेबाक और टकरावपूर्ण शैली भारतीय राजनीति में चर्चा का विषय बनी रहेगी।