राज्य सरकारों की नकद योजनाएं: महिलाओं के लिए आर्थिक सहायता या वित्तीय संकट?
महिलाओं के लिए नकद सहायता का बढ़ता चलन
देश में महिलाओं को सीधे नकद सहायता देने वाली योजनाओं का चलन तेजी से बढ़ रहा है। यह एक प्रतिस्पर्धा बन गई है जिसमें लगभग सभी राज्य भाग ले रहे हैं। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के हालिया अध्ययन के अनुसार, यह प्रवृत्ति 2022-23 में केवल दो राज्यों तक सीमित थी, लेकिन अब 2025-26 तक यह 12 राज्यों में फैल चुकी है।
इन योजनाओं पर होने वाला खर्च अत्यधिक है। अनुमान है कि इस वर्ष राज्य सरकारें इन योजनाओं पर कुल 1,68,040 करोड़ रुपये खर्च करेंगी, जो कि इन राज्यों के कुल सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 0.5% है। दो साल पहले, यह आंकड़ा GSDP के 0.2% से भी कम था।
विभिन्न योजनाओं के नाम और उद्देश्य
लाडली, लक्ष्मी, बहन… नाम अनेक, मकसद एक
ये योजनाएं विभिन्न राज्यों में आकर्षक नामों से चलाई जा रही हैं। कर्नाटक में ‘गृह लक्ष्मी योजना’, मध्य प्रदेश की ‘लाड़ली बहना योजना’, और महाराष्ट्र की ‘लड़की बहन योजना’ सभी का उद्देश्य महिला मतदाताओं को सीधे आर्थिक सहायता प्रदान करना है।
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राजनीतिक दल इसे महिला सशक्तिकरण का एक महत्वपूर्ण कदम मानते हैं और चुनावों से पहले इसका उपयोग कर रहे हैं। लाभार्थियों की खुशी स्पष्ट है, लेकिन यह खुशी राज्य के खजाने पर भारी पड़ रही है।
राजस्व घाटा और आर्थिक दबाव
तिजोरी पर बढ़ता दबाव, राजस्व घाटे में राज्य
पीआरएस की रिपोर्ट इस प्रवृत्ति के चिंताजनक पहलू को उजागर करती है। यह भारी खर्च ऐसे समय में हो रहा है जब कई राज्य पहले से ही आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, इन 12 राज्यों में से 6 ने 2025-26 के लिए ‘राजस्व घाटा’ का अनुमान लगाया है।
राजस्व घाटा दर्शाता है कि राज्य की आमदनी उसके नियमित खर्चों को पूरा करने के लिए अपर्याप्त है। इसका मतलब है कि राज्य अपने नियमित खर्चों जैसे वेतन और पेंशन के लिए भी कर्ज ले रहे हैं।
उदाहरण के लिए, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में, यदि नकद हस्तांतरण योजनाओं के खर्च को हटा दिया जाए, तो कर्नाटक का खजाना GSDP के 0.3% ‘राजस्व सरप्लस’ में होता। लेकिन इन योजनाओं के कारण, राज्य अब GSDP के 0.6% ‘राजस्व घाटे’ में चला गया है। इसी तरह, मध्य प्रदेश का राजस्व सरप्लस GSDP के 1.1% से घटकर 0.4% पर आ गया है।
चुनावी वर्ष में बढ़ता खर्च
चुनावी साल, बढ़ता आवंटन और RBI की चेतावनी
इस खर्च की गति कम होने के बजाय बढ़ रही है, खासकर उन राज्यों में जहां चुनाव नजदीक हैं। असम और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने अपने बजट में वृद्धि की है। असम ने पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 31% की बढ़ोतरी की है, जबकि पश्चिम बंगाल ने 15% की वृद्धि की है।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने पहले ही राज्यों को इस बढ़ते वित्तीय बोझ के बारे में चेतावनी दी है। RBI का मानना है कि इससे राज्यों का वित्तीय स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है और विकास के अन्य आवश्यक कार्यों के लिए धन की कमी हो सकती है।
राज्यों का कर्ज और आर्थिक चुनौतियाँ
पहले से ही कर्ज के बोझ तले दबे हैं राज्य
यह नकद हस्तांतरण का नया खर्च ऐसे समय में आया है जब राज्यों का कुल बकाया कर्ज पहले से ही उच्च स्तर पर है। पीआरएस रिपोर्ट के अनुसार, राज्यों का कुल बकाया कर्ज महामारी से पहले के स्तर से भी अधिक है। मार्च 2025 तक, राज्यों का कुल कर्ज GSDP का 27.5% था, जबकि FRBM समीक्षा समिति ने इसे 20% पर रखने की सिफारिश की थी।
पंजाब, हिमाचल प्रदेश, और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्य अपनी GSDP की तुलना में अधिक कर्ज के बोझ तले दबे हैं। ऐसे में, 1.68 लाख करोड़ रुपये का यह नया सालाना खर्च, जो सीधे तौर पर कोई संपत्ति नहीं बनाता, राज्यों की आर्थिक चुनौतियों को और बढ़ा सकता है।
