राजा की कहानी: अहंकार का त्याग और सच्ची सेवा

एक अहंकारी राजा की दानशीलता

एक समय का जिक्र है जब एक राजा अत्यंत अहंकारी था, लेकिन दान देने में भी उसका विश्वास था। उसने तय किया कि अपने जन्मदिन पर वह किसी एक व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूरी करेगा। इस अवसर पर राजमहल में एक भव्य समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें राज्य की पूरी प्रजा को आमंत्रित किया गया। सभी ने राजा को बधाई देने के लिए महल में एकत्रित हुए।
इस समारोह में एक साधु भी शामिल हुआ, जिसने राजा को जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं। राजा ने साधु से मिलने के बाद सोचा कि क्यों न उसकी इच्छाएं पूरी की जाएं। राजा ने साधु से कहा कि वह उसे अपनी इच्छाएं बताने के लिए आमंत्रित करता है। साधु ने उत्तर दिया कि उसे कुछ नहीं चाहिए, लेकिन राजा ने उसे एक गांव देने का प्रस्ताव रखा।
साधु ने राजा को समझाया कि गांव पर वहां के निवासियों का अधिकार है, इसलिए वह इसे नहीं ले सकता। राजा ने फिर सोचा कि वह साधु को क्या दे सकता है। उसने महल देने का प्रस्ताव रखा, लेकिन साधु ने कहा कि यह भी प्रजा की संपत्ति है।
राजा ने साधु से कहा कि वह उसे अपना सेवक बना ले, लेकिन साधु ने इसे भी अस्वीकार कर दिया। साधु ने राजा को सलाह दी कि यदि वह वास्तव में कुछ देना चाहता है, तो उसे अपने अहंकार का त्याग करना चाहिए। उसने कहा कि अहंकार के कारण कई राजाओं का विनाश हुआ है।
राजा ने साधु की बात को गंभीरता से लिया और अपने अहंकार को छोड़ने का वादा किया। उसने साधु के चरणों में गिरकर आशीर्वाद मांगा। इसके बाद, राजा ने अपने अहंकार को हमेशा के लिए त्याग दिया और अपनी प्रजा की सेवा में जुट गया।