राजस्थान धर्मांतरण कानून की वैधता पर उच्चतम न्यायालय का नोटिस

उच्चतम न्यायालय ने राजस्थान विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर राज्य सरकार से जवाब मांगा है। याचिकाकर्ता ने विधायी क्षमता और संवैधानिक सीमाओं के संदर्भ में अतिरेक का मुद्दा उठाया है। पीठ ने मामले की सुनवाई चार हफ्ते बाद निर्धारित की है। यह मामला अन्य लंबित याचिकाओं के साथ भी जुड़ा हुआ है। जानें इस महत्वपूर्ण कानूनी मामले के बारे में और क्या है इसके पीछे का तर्क।
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राजस्थान धर्मांतरण कानून की वैधता पर उच्चतम न्यायालय का नोटिस

उच्चतम न्यायालय ने राजस्थान के धर्मांतरण कानून पर उठाए सवाल

सोमवार को, उच्चतम न्यायालय ने राजस्थान विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर राजस्थान सरकार और अन्य से जवाब मांगा।


न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने ‘जयपुर कैथोलिक वेलफेयर सोसाइटी’ द्वारा दायर याचिका पर राज्य और अन्य को नोटिस जारी किया। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा, ‘‘हमने विधायी क्षमता और संवैधानिक सीमाओं के संदर्भ में अतिरेक का मुद्दा उठाया है।’’


पीठ ने बताया कि इसी तरह के मुद्दों पर अन्य याचिकाएं भी शीर्ष अदालत में विचाराधीन हैं। धवन ने कहा, ‘‘हमने एक अलग सवाल उठाया है।’’ न्यायमूर्ति नाथ ने कहा, ‘‘हम नोटिस जारी करेंगे और दूसरे पक्ष को बुलाएंगे, फिर आपकी बात सुनेंगे।’’


पीठ ने याचिका पर नोटिस जारी किया और मामले की सुनवाई चार हफ्ते बाद के लिए निर्धारित की। इस याचिका को अन्य लंबित याचिकाओं के साथ संलग्न कर दिया गया।


तीन नवंबर को, शीर्ष अदालत ने राजस्थान में लागू अवैध धर्मांतरण निरोधक कानून के कई प्रावधानों की वैधता को चुनौती देने वाली दो याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सहमति जताई।


इसने राजस्थान सरकार को नोटिस जारी कर सितंबर में राज्य विधानसभा द्वारा पारित वर्ष 2025 के अधिनियम के खिलाफ याचिकाओं पर चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा। सितंबर में, शीर्ष अदालत की एक अन्य पीठ ने विभिन्न राज्यों से उनके धर्मांतरण निरोधक कानूनों पर रोक लगाने की मांग वाली याचिकाओं पर उनका रुख पूछा था।


तब शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया था कि जवाब दाखिल होने के बाद वह ऐसे कानूनों के संचालन पर रोक लगाने के अनुरोध पर विचार करेगी। उस समय पीठ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, झारखंड और कर्नाटक सहित कई राज्यों द्वारा लागू किए गए धर्मांतरण निरोधक कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के समूह पर विचार कर रही थी।