राजस्थान के ट्रॉमा सेंटर में आग: लापरवाही से गई 8 मरीजों की जान
राजस्थान के सवाई मान सिंह अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में शॉर्ट सर्किट से लगी आग ने आठ मरीजों की जान ले ली। इस घटना ने सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की लापरवाही को उजागर किया है। ट्रॉमा सेंटर के इंचार्ज ने उच्च अधिकारियों को कई बार खत लिखकर हादसे की आशंका जताई थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। आग लगने के बाद, हाईकोर्ट ने भी सरकारी भवनों की सुरक्षा पर कड़ी टिप्पणी की है। इस हादसे ने स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता को और अधिक स्पष्ट कर दिया है।
Oct 7, 2025, 14:20 IST
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सवाई मान सिंह अस्पताल में आग का हादसा
राजस्थान के सवाई मान सिंह (एसएमएस) अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में रविवार रात शॉर्ट सर्किट के कारण लगी आग ने आठ मरीजों की जान ले ली। इस घटना ने सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की लापरवाही को उजागर किया है। न्यूज मीडिया के पास मौजूद दस्तावेजों के अनुसार, ट्रॉमा सेंटर के इंचार्ज डॉ. अनुराग धाकड़ ने पिछले एक महीने में तीन बार उच्च अधिकारियों को खत लिखकर हादसे की आशंका जताई थी, लेकिन न तो निर्माण कार्य रोका गया और न ही विद्युत व्यवस्था को ठीक किया गया। इस बीच, राजस्थान हाईकोर्ट ने सरकारी भवनों की सुरक्षा पर कड़ी टिप्पणी की है, जबकि सरकार ने मुआवजे और जांच का आश्वासन दिया है।
ट्रॉमा सेंटर के न्यूरोसर्जरी आईसीयू में रविवार रात लगभग 11:20 बजे आग लग गई। आग तेजी से फैल गई और जहरीली गैसें छोड़ने लगीं, जिससे आईसीयू में अफरा-तफरी मच गई। मरीजों के परिजनों ने आरोप लगाया कि डॉक्टर और कंपाउंडर धुएं के फैलने पर भाग गए, जिससे तीमारदारों को खुद मरीजों को बचाना पड़ा। फायर ब्रिगेड की सात गाड़ियां मौके पर पहुंचीं, लेकिन आग पर काबू पाने में 1:30 घंटे लग गए। इस हादसे में आठ लोगों की जान गई, जबकि पांच अन्य मरीजों की स्थिति गंभीर बनी हुई है।
लापरवाही के कारण हुआ बड़ा हादसा
पुलिस कमिश्नर बिजू जॉर्ज जोसेफ ने बताया कि प्रारंभिक जांच में शॉर्ट सर्किट को आग का कारण माना गया है, लेकिन एफएसएल जांच के बाद ही पुष्टि होगी। वहीं, ट्रॉमा इंचार्ज डॉ. अनुराग धाकड़ ने कहा कि आग न्यूरो आईसीयू से शुरू हुई, जहां 11 मरीज थे। अधिकांश मरीज कोमा में थे, जिससे बचाव कार्य करना मुश्किल था। न्यूज मीडिया के पास मौजूद पत्रों से स्पष्ट है कि यह हादसा टाला जा सकता था, लेकिन लापरवाही ने सब कुछ बर्बाद कर दिया। ट्रॉमा सेंटर की दीवारों में करंट फैल रहा था, छत से पानी टपक रहा था और इलेक्ट्रिक बोर्ड की वायरिंग खराब थी। डॉ. धाकड़ ने इन समस्याओं के बारे में बार-बार पत्र लिखकर जानकारी दी, लेकिन उनकी बातों को नजरअंदाज किया गया।
डॉ. धाकड़ ने सबसे पहले 8 सितंबर को एसएमएस अस्पताल के अधीक्षक को पत्र लिखकर निर्माणाधीन न्यूरो ओटी के कारण ट्रॉमा सेंटर के ऑपरेशन थिएटर में करंट आने की शिकायत की थी। इसके बाद 9 सितंबर को उन्होंने फिर से खत लिखा, जिसमें बड़े हादसे की चेतावनी दी गई। 1 अक्टूबर को नर्सिंग सुपरिंटेंडेंट ने भी 'विद्युत पैनल क्षतिग्रस्त, बड़ा हादसा संभव' लिखा। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसके बाद, 3 अक्टूबर को डॉ. धाकड़ ने अधीक्षक को फिर से रिमाइंडर भेजा, लेकिन प्रशासन ने कोई कदम नहीं उठाया।
हाईकोर्ट ने भी की कड़ी फटकार
हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने सोमवार को झालावाड़ स्कूल की छत गिरने की याचिका पर सुनवाई के दौरान ट्रॉमा अग्निकांड का जिक्र किया। बेंच ने कहा, “सरकारी इमारतों में क्या हो रहा है? कहीं आग लग रही है, कहीं छत गिर रही है। एसएमएस ट्रॉमा तो नया बना है, वहां भी ये?” कोर्ट ने जर्जर भवनों पर सरकार की रिपोर्ट से असंतोष जताया और 9 अक्टूबर तक बजट, खर्च और मरम्मत का रोडमैप पेश करने का आदेश दिया। यह भी चेतावनी दी गई कि यदि रोडमैप पेश नहीं किया गया तो मुख्य सचिव को बुलाया जाएगा। एमएमएस अस्पताल हादसे के बाद सरकार अब डैमेज कंट्रोल में जुटी हुई है।