रणछोड़दास 'पागी': एक अद्वितीय योद्धा की कहानी

रणछोड़दास 'पागी' की कहानी एक साधारण व्यक्ति से लेकर भारतीय सेना के महत्वपूर्ण योद्धा बनने तक की है। सैम मानेकशॉ के अंतिम क्षणों में 'पागी' का नाम लेना दर्शाता है कि कैसे एक अद्वितीय कौशल ने उन्हें सेना में एक विशेष स्थान दिलाया। जानें उनके जीवन के अनकहे किस्से और उनके योगदान के बारे में।
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रणछोड़दास 'पागी': एक अद्वितीय योद्धा की कहानी

रणछोड़दास 'पागी' की अद्भुत यात्रा

रणछोड़दास 'पागी': एक अद्वितीय योद्धा की कहानी


भारतीय सेना के पूर्व अध्यक्ष सैम मानेकशॉ ने अपने अंतिम क्षणों में रणछोड़दास 'पागी' को याद किया। सैम मानेकशॉ, जिन्होंने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान को हराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, का नाम देश में हर कोई जानता है। उनका पूरा नाम 'होरमुजजी फ्रामदी जमशेदजी मानेकशॉ' था, लेकिन उनकी बहादुरी के कारण उन्हें 'सैम बहादुर' के नाम से जाना जाता था।


सैम मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 को अमृतसर में हुआ था। वे भारतीय सेना के पहले जनरल थे जिन्हें फील्ड मार्शल की रैंक दी गई। उनके जीवन में कई रोचक किस्से हैं, जिनमें से एक इंदिरा गांधी के साथ उनकी बातचीत है। जब इंदिरा गांधी ने उनसे सवाल किए, तो उन्होंने उन्हें 'प्रधानमंत्री' कहकर संबोधित किया, 'मैडम' शब्द का उपयोग नहीं किया।


रणछोड़दास 'पागी': एक अद्वितीय योद्धा की कहानी


रणछोड़दास 'पागी' का जन्म गुजरात के एक साधारण परिवार में हुआ था। उनका गांव पाकिस्तान की सीमा के निकट था। 'पागी' के पास एक विशेष कौशल था, जिससे वह ऊंट के पैरों के निशान देखकर बता सकते थे कि उस पर कितने लोग सवार थे। इस कौशल के कारण उन्हें भारतीय सेना में स्काउट के रूप में भर्ती किया गया।


1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में, 'पागी' ने दुश्मनों की स्थिति का पता लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने 1200 पाकिस्तानी सैनिकों का पता लगाया और सेना को समय से पहले गंतव्य तक पहुँचाया। सैम मानेकशॉ ने उन्हें 'पागी' नाम का विशेष पद दिया, जिसका अर्थ है एक ऐसा गाइड जो पैरों के निशान पढ़ सके।


1971 के युद्ध में भी 'पागी' ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने पाकिस्तान के 'पालीनगर' पर तिरंगा फहराने में मदद की और इसके लिए उन्हें कई पुरस्कार मिले। सैम मानेकशॉ ने अपने अंतिम समय में 'पागी' का नाम लिया, जब वे वेलिंगटन अस्पताल में भर्ती थे।


रणछोड़दास 'पागी': एक अद्वितीय योद्धा की कहानी


रणछोड़दास 'पागी' ने 2009 में सेना से सेवानिवृत्त हुए, जब उनकी उम्र 108 वर्ष थी। उनका निधन 2013 में 112 वर्ष की आयु में हुआ।


हाल ही में, कच्छ बनासकांठा सीमा के पास एक बॉर्डर का नाम 'रणछोड़दास पागी' रखा गया है, और उनकी एक प्रतिमा भी स्थापित की गई है। यह पहली बार है कि किसी आम व्यक्ति के नाम पर बॉर्डर का नाम रखा गया है।