यूरोपीय संघ के नए प्रतिबंधों से नायरा एनर्जी और भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर प्रभाव
यूरोपीय संघ ने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध के चलते रूस पर नए प्रतिबंधों की घोषणा की है, जिसमें भारत की नायरा एनर्जी रिफाइनरी का नाम शामिल है। यह कदम न केवल नायरा एनर्जी के लिए चुनौती है, बल्कि रिलायंस इंडस्ट्रीज के लिए भी समस्याएँ पैदा कर सकता है। भारत ने इन प्रतिबंधों पर 'दोहरा मापदंड' अपनाने का आरोप लगाया है और अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए विकल्पों की आज़ादी बनाए रखने की बात की है। जानें इस स्थिति का विस्तृत विश्लेषण और भारत की प्रतिक्रिया।
Jul 19, 2025, 11:54 IST
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यूरोपीय संघ के नए प्रतिबंधों की घोषणा
यूरोपीय संघ (ईयू) ने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध के संदर्भ में रूस पर नए प्रतिबंधों की घोषणा की है। इनमें भारत की वाडिनार स्थित नायरा एनर्जी रिफाइनरी का नाम भी शामिल है, जिसमें रूसी ऊर्जा कंपनी रोसनेफ्ट की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है। यह प्रतिबंध न केवल नायरा एनर्जी के लिए एक झटका होगा, बल्कि रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) के लिए भी चुनौती पेश करेगा, क्योंकि दोनों कंपनियों पर यूरोपीय संघ से बाहर होने का खतरा मंडरा रहा है। इस स्थिति ने रूसी ऊर्जा दिग्गज रोसनेफ्ट की नायरा में अपनी 49% हिस्सेदारी बेचने की योजना को भी जटिल बना दिया है। आरआईएल और नायरा भारत के प्रमुख ईंधन निर्यातक माने जाते हैं।
प्रतिबंधों का उद्देश्य और प्रभाव
यूरोपीय संघ का 18वां प्रतिबंध पैकेज रूस के ऊर्जा क्षेत्र को कमजोर करने के प्रयास का हिस्सा है। इस समय अमेरिकी संसद भी रूस से कच्चे तेल खरीदने वाले देशों पर सख्त प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रही है, जिनमें भारत, चीन और ब्राजील शामिल हैं। नायरा एनर्जी, जो पहले एस्सार ऑयल लिमिटेड के नाम से जानी जाती थी, गुजरात के वडिनार में स्थित है और यह भारत की दूसरी सबसे बड़ी रिफाइनरी है। यह प्रतिदिन 4 लाख बैरल तेल प्रोसेस करती है और इसके देशभर में 6300 से अधिक पेट्रोल पंप हैं। इसमें रूसी सरकारी तेल कंपनी रोजनेफ्ट की 49.13% हिस्सेदारी है, जबकि शेष हिस्सेदारी केसानी इंटरप्राइजेज और अन्य निवेशकों के पास है। यूरोपीय संघ ने इसे रूस की सैन्य और आर्थिक मशीनरी से जोड़ा है।
प्रतिबंधों की प्रमुख बातें
नायरा एनर्जी रिफाइनरी पर पूर्ण प्रतिबंध लागू होंगे, जिसमें यात्रा प्रतिबंध, संपत्ति फ्रीज और संसाधनों की प्राप्ति पर रोक शामिल है। यूरोपीय संघ ने रूस से बने पेट्रोलियम उत्पादों के आयात पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया है। इसके अलावा, रूसी कच्चे तेल की कीमत की अधिकतम सीमा घटाकर 47.6 डॉलर प्रति बैरल कर दी गई है, जो पहले 60 डॉलर थी। नॉर्ड स्ट्रीम 1 और 2 जैसी गैस पाइपलाइनों पर लेनदेन भी पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया है।
भारत की प्रतिक्रिया
भारत ने इन प्रतिबंधों पर ‘दोहरा मापदंड’ अपनाने का आरोप लगाया है। भारत का कहना है कि जब यूरोप वर्षों तक रूस से सस्ती गैस और तेल लेता रहा, तब विकासशील देशों पर इस तरह का दबाव उचित नहीं है। भारत ने पहले भी कहा है कि वह अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए विकल्पों की आज़ादी बनाए रखेगा। भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारत किसी भी एकतरफा प्रतिबंध उपायों का समर्थन नहीं करता है। प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि भारत एक ‘जिम्मेदार’ देश है और अपने कानूनी दायित्वों के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
भारत की ऊर्जा आपूर्ति की स्थिति
भारत ने रूस से कच्चे तेल की आपूर्ति पर अमेरिकी प्रतिबंधों की आशंका को अधिक महत्व नहीं दिया है। पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि भारत, रूस से तेल की आपूर्ति में किसी भी बाधा से निपटने के लिए अन्य देशों से तेल खरीद सकता है। उन्होंने कहा कि भारत के तेल आपूर्ति के स्रोत अब विविध हो चुके हैं। पहले 27 देशों से तेल खरीदने वाले भारत की संख्या अब बढ़कर लगभग 40 हो गई है।
नए प्रतिबंधों का दायरा
यूरोपीय संघ ने 14 नए व्यक्तियों और 41 नई कंपनियों को प्रतिबंध सूची में जोड़ा है। अब तक 2500 से अधिक कंपनियां और संस्थाएं यूरोपीय प्रतिबंधों के तहत सूचीबद्ध हो चुकी हैं। इसके अलावा, रूस के शैडो फ्लीट पर भी कड़ा शिकंजा कसा गया है, जिनके जरिए रूसी तेल की गुप्त आपूर्ति होती थी। 105 नए जहाजों पर यूरोपीय बंदरगाहों में प्रवेश और सेवाओं पर प्रतिबंध लगाया गया है।
भविष्य की चुनौतियाँ
इन प्रतिबंधों के चलते रूस के साथ व्यापार करने वाले देशों और कंपनियों पर दबाव बढ़ेगा। विशेषकर भारत, चीन और ब्राजील जैसे देश जो रूसी तेल के बड़े खरीदार हैं, उन्हें आर्थिक और कूटनीतिक विकल्पों पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है। भारत के लिए यह चिंता का विषय है कि गुजरात की रिफाइनरी पर प्रतिबंध का असर केवल रूस तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि भारत की ऊर्जा आपूर्ति व्यवस्था और निवेश माहौल पर भी प्रभाव डालेगा।
निष्कर्ष
यूरोपीय संघ और अमेरिका की यह रणनीति स्पष्ट रूप से दिखाती है कि वे रूस को आर्थिक रूप से कमजोर करने के लिए वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के हर छोर पर दबाव बनाने की नीति अपना चुके हैं। भारत को अपनी ऊर्जा नीति में विवेकपूर्ण रणनीति अपनानी होगी ताकि वह अमेरिका और यूरोप के बढ़ते दबाव के बीच संतुलन बनाए रख सके।