मोहन भागवत का संदेश: भारतीय ज्ञान प्रणाली से दुनिया को नया मार्ग दिखाने की आवश्यकता

भारतीय ज्ञान प्रणाली का महत्व

मोहन भागवत
संघ के प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने मुंबई में ‘आर्य युग विषय कोश’ का उद्घाटन करते हुए भारतीय ज्ञान प्रणाली के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने ‘अति आत्मविश्वास’ के कारण मूलभूत बातों को भूलने के खतरे की ओर इशारा किया। भागवत ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने कभी धर्मांतरण नहीं किया, बल्कि लोगों को एकजुट करने का कार्य किया। उन्होंने यह भी कहा कि आज की दुनिया भारत की ओर देख रही है, और हमें स्वदेशी विचारों को अपनाकर वैश्विक दिशा दिखानी होगी।
भागवत ने बताया कि हमारे पूर्वजों ने कई शास्त्रों की रचना की, लेकिन उन्होंने कभी किसी का धर्मांतरण नहीं किया और न ही किसी पर अपने धर्म को थोपने का प्रयास किया। यह यात्रा हमेशा एकता और सामंजस्य स्थापित करने के लिए रही है।
उन्होंने यह भी कहा कि हर चार साल में ऐसे लोग भारत आते हैं जो हिंदू समाज से जुड़े हैं और कठिनाइयों के बावजूद अपनी पहचान बनाए रखते हैं। लेकिन आज का समाज अति आत्मविश्वास के चलते अपने मूल को भूलता जा रहा है।
विनाश की ओर बढ़ती दुनिया
डॉ. भागवत ने आगे कहा कि जब विदेशी लोग भारत आए, तो उन्होंने हमारी सभ्यता की गहराई को नहीं समझा, बल्कि हमारे ज्ञान को अपनाकर हमें पीछे छोड़ दिया। उन्होंने चेतावनी दी कि आज भी कुछ लोग हमारी प्रगति में रुकावट डाल रहे हैं। ऐसे में हमें शांति और आत्मबल दोनों को प्राप्त करना होगा।
संघ प्रमुख ने कहा कि दुनिया आज विनाश की ओर बढ़ रही है, लेकिन नया रास्ता भारत के पास है। इसलिए पूरी दुनिया भारत की ओर देख रही है। हमें भारतीय ज्ञान प्रणाली से जुड़ना होगा और विदेशी प्रभाव से मुक्त होना होगा।
उन्होंने यह भी कहा कि पश्चिम का ज्ञान समझना गलत नहीं है, लेकिन हमारे अपने ग्रंथ और हमारी सभ्यता ही हमारी पहचान हैं। इसलिए भारत को अपने मूल स्वरूप को बनाए रखते हुए आधुनिकता के साथ आगे बढ़ना होगा। इस कार्यक्रम में कई विद्वान, संघ के स्वयंसेवक, सामाजिक कार्यकर्ता और नागरिक शामिल हुए।