मोहन भागवत का संघ पर महत्वपूर्ण बयान: भारत को विश्व गुरु बनाने का संकल्प
संघ प्रमुख का दृष्टिकोण
संघ प्रमुख मोहन भागवत.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि संघ को समझने में तुलना या गलत दृष्टिकोण से देखने से भ्रम उत्पन्न हो सकता है। कोलकाता में आयोजित RSS 100 व्याख्यान माला कार्यक्रम में उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ न तो एक साधारण सेवा संगठन है और न ही इसे बीजेपी के नजरिए से देखना चाहिए।
भागवत ने संघ के मुख्य उद्देश्य पर कहा, “संघ की स्थापना का सार है, भारत माता की जय। भारत केवल एक देश नहीं है, बल्कि यह एक विशेष स्वभाव और परंपरा का प्रतीक है। हमारा लक्ष्य उस परंपरा को बनाए रखते हुए भारत को पुनः विश्व गुरु बनाना है।”
उन्होंने जोर देकर कहा कि संघ का गठन किसी राजनीतिक उद्देश्य या प्रतिस्पर्धा के लिए नहीं हुआ। “संघ हिंदू समाज के संगठन, विकास और संरक्षण के लिए समर्पित है। उल्लेखनीय है कि मोहन भागवत ने 18 दिसंबर को पश्चिम बंगाल का चार दिवसीय दौरा आरंभ किया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह दौरा महत्वपूर्ण है, क्योंकि राज्य अगले साल विधानसभा चुनावों की तैयारी कर रहा है।
इतिहास का संदर्भ
इतिहास के संदर्भ में बात करते हुए भागवत ने कहा कि सुभाष चंद्र बोस के निधन के बाद अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष समाप्त हो गया। लेकिन समाज सुधार की प्रक्रिया, जो राजा राम मोहन राय के समय से चल रही है, एक निरंतर लहर रही है। भागवत ने इसे समुद्र के बीच एक द्वीप के समान बताया, जो निरंतर चलता रहा।
समाज को मजबूत करने की आवश्यकता
मोहन भागवत के इस भाषण में संघ का महत्व और राष्ट्र की शक्ति तथा वैश्विक भूमिका पर भी जोर दिया गया। उन्होंने कहा कि भारत एक महान विरासत है और इसे दुनिया का नेतृत्व करने के लिए तैयार रहना होगा। अतीत में हम अंग्रेजों से युद्ध हार गए, लेकिन अब हमें अपने समाज को मजबूत करना है।
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