मोहन भागवत का अमेरिका-भारत संबंधों पर महत्वपूर्ण बयान

मोहन भागवत का दृष्टिकोण

मोहन भागवत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव और एच-1बी वीजा नियमों पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि भारत को वर्तमान चुनौतियों का सामना करने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए, लेकिन भविष्य में ऐसी समस्याओं से बचने के लिए एक स्थायी दृष्टिकोण अपनाना होगा।
रविवार (21 सितंबर) को दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन समारोह में भागवत ने कहा कि भारत और अन्य देशों को आज जिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, वह पिछले 2000 वर्षों में अपनाए गए विकास के खंडित दृष्टिकोण का परिणाम है। उन्होंने कहा कि इस दृष्टिकोण में 'मैं' और 'हम' के बीच की भावना प्रबल होती है। उन्होंने कहा, 'हमें इस स्थिति से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए। हमें इससे बाहर निकलने के लिए जो भी आवश्यक हो, वह करना होगा। लेकिन हम आंखें बंद करके आगे नहीं बढ़ सकते।'
‘हमें अपना रास्ता खुद बनाना होगा’
भागवत ने आगे कहा कि हमें अपने रास्ते का निर्माण स्वयं करना होगा। उन्होंने कहा कि हम किसी न किसी तरीके से समाधान निकाल लेंगे, लेकिन भविष्य में हमें इन समस्याओं का सामना फिर से करना पड़ सकता है। उन्होंने जीवन के चार लक्ष्यों का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत को अर्थ, काम और मोक्ष के अपने पारंपरिक दृष्टिकोण का पालन करना चाहिए, जो धर्म से जुड़ा हो और यह सुनिश्चित करे कि कोई भी पीछे न छूटे।
‘हर किसी के अलग-अलग हित होते हैं’
भागवत ने तीन साल पहले अमेरिका में एक व्यक्ति के साथ हुई मुलाकात को याद करते हुए कहा कि उन्होंने भारत-अमेरिका साझेदारी, सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी सहयोग पर चर्चा की, लेकिन हर बार उन्होंने अमेरिकी हितों की रक्षा की बात की। उन्होंने कहा कि हर किसी के अपने-अपने हित होते हैं, इसलिए संघर्ष तो चलता रहेगा। केवल राष्ट्र हित ही महत्वपूर्ण नहीं है।
‘तो हम 1947 से लेकर आज तक लगातार लड़ते रहते…’
उन्होंने यह भी कहा कि भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसने पर्यावरणीय मुद्दों पर अपनी सभी प्रतिबद्धताओं को निभाया है। भागवत ने कहा कि अगर हमें हर टकराव में लड़ना होता, तो हम 1947 से आज तक लगातार लड़ते रहते। लेकिन हमने सहनशीलता दिखाई है। उन्होंने कहा कि यदि भारत विश्वगुरु और विश्वमित्र बनना चाहता है, तो उसे अपने दृष्टिकोण के आधार पर अपना रास्ता स्वयं बनाना होगा।
उन्होंने यह भी कहा कि यदि हमें इसे प्रबंधित करना है, तो हमें अपने दृष्टिकोण से सोचना होगा। भारत का दृष्टिकोण पारंपरिक है, लेकिन यह पुराना नहीं है, यह 'सनातन' है। भागवत ने यह भी बताया कि भारत का दृष्टिकोण केवल 'अर्थ' और 'काम' को छोड़ता नहीं है, बल्कि ये दोनों जीवन के अनिवार्य पहलू हैं, बशर्ते कि वे धर्म से जुड़े हों.