मोदी सरकार का दाल आत्मनिर्भरता मिशन: 11,440 करोड़ की योजना से बदलेगी तस्वीर

दालों में आत्मनिर्भरता की ओर कदम

केंद्र सरकार ने दालों में आत्मनिर्भरता के लिए 11,440 करोड़ रुपये की योजना को मंजूरी दी है।
अब वह समय दूर नहीं जब देश की थाली में केवल स्थानीय दालें होंगी। केंद्र सरकार ने दालों के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल करने का निर्णय लिया है। इस उद्देश्य के लिए, कैबिनेट ने 'मिशन फॉर आत्मनिर्भरता इन पल्सेज़' नामक एक नई योजना को स्वीकृति दी है। इस योजना पर 11,440 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे और इसे 2025-26 से 2030-31 तक लागू किया जाएगा। सरकार का स्पष्ट लक्ष्य है कि 2030 तक भारत दालों में पूरी तरह आत्मनिर्भर हो जाए। वर्तमान में, भारत दुनिया में दालों का सबसे बड़ा उपभोक्ता है, लेकिन इसे 15 से 20 प्रतिशत दालों का आयात करना पड़ता है। इस योजना का उद्देश्य इस निर्भरता को समाप्त करना है।
उत्पादन में वृद्धि का लक्ष्य
इस मिशन के तहत दालों की खेती को बढ़ावा देने के लिए एक ठोस योजना बनाई गई है। सरकार का कहना है कि 2030 तक 310 लाख हेक्टेयर भूमि पर दालों की खेती की जाएगी और उत्पादन को 350 लाख टन तक पहुंचाया जाएगा। इसके लिए किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले बीज प्रदान किए जाएंगे। लगभग 126 लाख क्विंटल प्रमाणित बीज और 88 लाख मुफ्त बीज किट किसानों को उपलब्ध कराई जाएंगी। ये बीज उन क्षेत्रों में बोए जाएंगे जहां पहले दालों की खेती नहीं होती थी, जैसे धान की परती भूमि। बीज की गुणवत्ता और उपलब्धता की निगरानी SATHI नामक डिजिटल पोर्टल के माध्यम से की जाएगी। बीज उत्पादन का कार्य केंद्र और राज्य की एजेंसियों द्वारा संयुक्त रूप से किया जाएगा।
किसानों की फसल की खरीद की गारंटी
किसानों को हमेशा इस चिंता का सामना करना पड़ता है कि यदि उन्होंने कोई फसल बोई और बाजार में कीमतें गिर गईं, तो उन्हें नुकसान होगा। लेकिन इस योजना में किसानों को फसल के दाम की गारंटी दी गई है। तुअर (अरहर), उड़द और मसूर की दालों के लिए सरकार ने अगले चार वर्षों तक इन तीनों दालों की 100 प्रतिशत खरीद की योजना बनाई है। इसका मतलब है कि किसान जितनी भी उपज करेंगे, NAFED और NCCF जैसी सरकारी एजेंसियां उसे तय न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीदेंगी। खरीद केवल उन किसानों से होगी जो पहले से रजिस्टर होंगे और सरकारी एजेंसी के साथ समझौता करेंगे। इससे किसानों को यह विश्वास मिलेगा कि उनकी मेहनत व्यर्थ नहीं जाएगी। इसके अलावा, सरकार दालों की अंतरराष्ट्रीय कीमतों पर नजर रखेगी ताकि घरेलू बाजार में किसानों को नुकसान न हो।
गांवों में प्रोसेसिंग केंद्रों की स्थापना
फसल कटाई के बाद भी काफी नुकसान होता है, जिससे दाल की गुणवत्ता में कमी आती है और किसानों को कम मूल्य मिलता है। इस समस्या को हल करने के लिए सरकार 1,000 प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करेगी, जहां दाल की सफाई, छंटाई और पैकिंग की जाएगी। प्रत्येक यूनिट के लिए सरकार 25 लाख रुपये तक की सहायता प्रदान करेगी। ये यूनिट्स गांवों में स्थापित की जाएंगी, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार बढ़ेगा और किसानों को अपनी फसल बेचने के लिए दूर नहीं जाना पड़ेगा। सरकार की योजना है कि दालों की खेती केवल कुछ क्षेत्रों तक सीमित न रहे, बल्कि देश के विभिन्न हिस्सों में फैले, जिससे मौसम या आपदा का प्रभाव कम हो।
किसानों की आय में वृद्धि
इस मिशन का प्रभाव केवल दालों तक सीमित नहीं रहेगा। इससे किसानों की आय में वृद्धि होगी, क्योंकि उन्हें फसल का उचित मूल्य मिलेगा। इसके साथ ही, मिट्टी की सेहत भी सुधरेगी, क्योंकि दालों की फसल भूमि को पोषक तत्व प्रदान करती है। जब दालें देश में ही उगाई जाएंगी, तो विदेशी दालों का आयात करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, जिससे देश की विदेशी मुद्रा भी बचेगी। सरकार का मानना है कि इस योजना से कृषि क्षेत्र में बड़ा परिवर्तन आएगा। यह एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण है, जिसका लाभ आने वाले वर्षों में स्पष्ट रूप से दिखाई देगा।