मैहर बैंड: सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत प्रतीक

मैहर बैंड, जो बाबा अलाउद्दीन खां द्वारा स्थापित किया गया था, भारतीय संगीत की एक अनमोल धरोहर है। यह बैंड 1918 में प्लेग महामारी के दौरान अनाथ बच्चों के लिए एक नई शुरुआत के रूप में उभरा। आज, यह केवल एक संगीत समूह नहीं, बल्कि भारतीय सृजनशीलता का प्रतीक है। हालांकि, इसकी परंपरा कमजोर पड़ रही है। जानें कैसे यह बैंड न केवल मध्यप्रदेश बल्कि सम्पूर्ण भारत की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक बन सकता है।
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सांस्कृतिक धरोहर की पहचान

मैहर बैंड: सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत प्रतीक


जब भी भारत की सांस्कृतिक धरोहरों की बात होती है, मध्यप्रदेश में बाबा अलाउद्दीन खां द्वारा स्थापित मैहर बैंड का नाम अवश्य लिया जाता है। यह बैंड एक सदी से भी अधिक समय पहले, प्लेग महामारी के दौरान स्थापित किया गया था। यह भारत का पहला शास्त्रीय बैंड है, जो आज भी सक्रिय है, हालांकि इसकी धुनों में अब पहले जैसी गूंज नहीं सुनाई देती। अब इसकी धुनों में एक मौन किंतु गहरी पुकार सुनाई देती है— “मुझे बचा लो।”


करुणा से उपजा संगीत

1918 में, जब प्लेग ने मैहर रियासत को तबाह कर दिया था, तब बाबा अलाउद्दीन खां ने अनाथ बच्चों को अपने पास बुलाया, जिनके परिवार महामारी के कारण बिखर गए थे। उन्होंने न केवल उन्हें जीवन दिया, बल्कि संगीत का महत्व भी सिखाया। 12 लड़कों और 5 लड़कियों के साथ शुरू हुआ यह बैंड करुणा और कला का अद्भुत संगम बना। महाराजा बृजनाथ सिंह ने इसे राजकीय संरक्षण दिया और भारतीय वाद्यों को पश्चिमी ब्रास बैंड शैली में जोड़कर एक नया स्वर-संसार रचा गया, जिसे “मैहर बैंड” नाम दिया गया। यह विश्व का पहला ऐसा ऑर्केस्ट्रा माना जाता है, जिसमें भारतीय रागों की आत्मा को पश्चिमी स्वरबद्धता में पिरोया गया।


गौरव का समय

आज, 106 वर्ष बाद भी यह परंपरा जीवित है, लेकिन इसका आधार कमजोर होता जा रहा है। मैहर बैंड केवल एक संगीत समूह नहीं, बल्कि भारतीय सृजनशीलता का प्रतीक है। यहाँ के कलाकार आज भी ‘नाल तरंग’ जैसे अद्भुत वाद्य बनाते हैं, जो बंदूकों की नलियों से तैयार किए जाते हैं। बाबा अलाउद्दीन खां ने कहा था- “अब इन नालों से गोली नहीं, सुर निकलेंगे।” यह संदेश आज भी प्रासंगिक है कि कला विनाश नहीं, सृजन का माध्यम है।


भविष्य की दिशा में कदम

वर्ष 2023 में, सरकार ने “मैहर बैंड गुरुकुल” की स्थापना की घोषणा की थी, जिसमें प्रशिक्षण सत्र, छात्रवृत्ति और सेवानिवृत्त कलाकारों के लिए सम्मान निधि की बात की गई थी। यदि यह योजना सफल होती है, तो इस विरासत को पुनर्जीवित किया जा सकता है।


शिष्य और धरोहर का संरक्षण

बाबा अलाउद्दीन खां के शिष्य और उनकी परंपरा से जुड़े कलाकार आज भी इस धरोहर को जीवित रखे हुए हैं। वे नई पीढ़ी को संगीत सिखा रहे हैं और बैंड की आत्मा को बनाए रख रहे हैं।


संरक्षण की आवश्यकता

यदि यह परंपरा किसी यूरोपीय देश में होती, तो इसे राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जा चुका होता। भारत में भी यह पहल संभव है। मध्यप्रदेश सरकार और संस्कृति विभाग के लिए यह सही समय है कि वे स्थायी गुरुकुल भवन, प्रशिक्षित गुरुओं की नियुक्ति, पारंपरिक वाद्यों के संरक्षण और बैंड की राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रस्तुतियों को प्रोत्साहित करने जैसी पहल करें।


संस्कृति की आत्मा को संजोने का अवसर

आज जब संगीत का स्वरूप बाजार में बदल चुका है और शास्त्रीय परंपराएं अपने अस्तित्व को बचाने का संघर्ष कर रही हैं, तब मैहर बैंड जैसी धरोहरें हमें हमारी जड़ों की याद दिलाती हैं। यदि इस दिशा में नियोजित और संवेदनशील प्रयास किए जाएं, तो यह बैंड न केवल मध्यप्रदेश बल्कि सम्पूर्ण भारत की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक बन सकता है।


जीवंत परंपरा का संरक्षण

बाबा का मैहर बैंड केवल इतिहास की धरोहर नहीं, बल्कि एक जीवंत परंपरा है। इसे भविष्य की धरोहर के रूप में सहेजने की आवश्यकता है। यदि सरकार, समाज और संगीत प्रेमी मिलकर कदम बढ़ाएं, तो करुणा से जन्मी यह धुन फिर से मानवता को जोड़ने वाला संगीत गुंजा सकती है।