मेनका गांधी का 69वां जन्मदिन: संघर्ष और सफलता की कहानी

आज, मेनका गांधी अपना 69वां जन्मदिन मना रही हैं। उनके जीवन में कई संघर्ष और सफलताएं शामिल हैं। जानें कैसे उन्होंने राजनीति में कदम रखा और अपने पति संजय गांधी के साथ बिताए समय के बाद अपने करियर को आगे बढ़ाया। इस लेख में उनके जीवन की कुछ रोचक बातें साझा की गई हैं, जो आपको प्रेरित करेंगी।
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मेनका गांधी का 69वां जन्मदिन: संघर्ष और सफलता की कहानी

जन्मदिन का जश्न

आज, 26 अगस्त को, पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी अपने 69वें जन्मदिन का उत्सव मना रही हैं। जब भी भारतीय राजनीति में गांधी परिवार का नाम लिया जाता है, मेनका गांधी का नाम सोनिया गांधी से पहले आता है, क्योंकि उन्होंने राजनीति में अपने कदम पहले रखे थे। उल्लेखनीय है कि मेनका गांधी ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव लड़कर की थी। उनका जीवन कई संघर्षों से भरा रहा है, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और हमेशा आगे बढ़ती रहीं। आइए, उनके जन्मदिन के अवसर पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें जानते हैं...


परिवार और प्रारंभिक जीवन

मेनका गांधी का जन्म 26 अगस्त 1956 को नई दिल्ली में हुआ। उन्हें 17 साल की उम्र में मॉडलिंग का पहला अवसर मिला। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने बॉम्बे डाइंग के विज्ञापन को देखकर मेनका गांधी को पसंद किया। 1973 में उनकी पहली मुलाकात हुई, जो जल्द ही प्यार में बदल गई। हालांकि, इंदिरा गांधी ने इस रिश्ते को मंजूरी नहीं दी, लेकिन 23 सितंबर 1974 को 18 साल की मेनका ने 10 साल बड़े संजय गांधी से विवाह कर लिया।


संजय गांधी का निधन

1982 में एक विमान दुर्घटना में संजय गांधी का निधन हो गया। इसके बाद, इंदिरा गांधी ने मेनका गांधी को घर से निकाल दिया, क्योंकि उन्हें संजय गांधी की पत्नी के रूप में उनकी राजनीतिक गतिविधियों पर संदेह था। उस समय मेनका की उम्र 23 वर्ष थी और उनके बेटे वरुण गांधी केवल 100 दिन के थे। इस कठिन समय में मेनका गांधी की जिंदगी में कई बदलाव आए। पहले, वह संजय गांधी के साथ अक्सर यात्रा करती थीं, लेकिन पति की मृत्यु के बाद सब कुछ बदल गया।


राजनीतिक सफर

ससुराल से बाहर निकलने के बाद, मेनका गांधी ने अपने पति के ट्रक बेचकर पैसे जुटाए और फिर किताबें और पत्रिकाएं लिखना शुरू किया। उन्होंने राष्ट्रीय संजय मंच की स्थापना की और आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने चार में से पांच सीटें जीतीं। 1984 में, मेनका गांधी ने राजीव गांधी के खिलाफ अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा।


1988 में, मेनका गांधी वीपी सिंह की जनता दल में शामिल हो गईं। 1989 के लोकसभा चुनाव में वह पहली बार सांसद बनीं और बाद में केंद्रीय मंत्री भी बनीं। इसके बाद से, मेनका गांधी ने पीलीभीत से लगातार सांसद के रूप में अपनी स्थिति मजबूत की।