मीराबाई की जयंती: कृष्ण भक्ति की अनोखी कहानी

7 अक्टूबर को मीराबाई की जयंती मनाई जाती है, जो भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थीं। उनका जीवन प्रेम, समर्पण और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। जानें कैसे उन्होंने समाज की सीमाओं को पार किया और कृष्ण को अपना पति मान लिया। मीराबाई का विवाह मेवाड़ के राजकुमार से हुआ, लेकिन उन्होंने हमेशा कृष्ण भक्ति को प्राथमिकता दी। उनके जीवन की यह कहानी भक्ति और स्वतंत्रता का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करती है।
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मीराबाई की जयंती: कृष्ण भक्ति की अनोखी कहानी

मीराबाई की भक्ति का अद्भुत सफर

मीराबाई की जयंती: कृष्ण भक्ति की अनोखी कहानी

कृष्ण भक्त मीराबाई की जयंती 2025

कृष्ण भक्त मीराबाई: भारत में भक्ति की अद्वितीय साधिका और कवयित्री मीराबाई की जयंती 7 अक्टूबर को मनाई जाती है। वह भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थीं। मीराबाई ने भक्ति के माध्यम से समाज की सीमाओं को पार किया और प्रेम, समर्पण, और आध्यात्मिकता का एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया। कहा जाता है कि उनकी भक्ति किसी बंधन में नहीं बंधी, और उन्होंने आत्मा और ईश्वर के बीच के प्रेम को दर्शाया। उन्होंने अपने समय में स्त्री स्वतंत्रता और आध्यात्मिक समानता का मार्ग प्रशस्त किया।

मान्यता के अनुसार, मीराबाई का जन्म 1448 में जोधपुर में हुआ था। वे राठौड़ रतन सिंह की एकमात्र संतान थीं। उनका विवाह मेवाड़ के सिसोदिया राज परिवार में हुआ, जहाँ उनके पति चित्तौड़गढ़ के महाराजा भोजराज थे, जो महाराणा सांगा के पुत्र थे। विवाह से पहले ही मीराबाई कृष्ण भक्ति में लीन हो गई थीं। उनकी भक्ति की शुरुआत तब हुई जब पड़ोस में एक बारात आई थी।

मीराबाई का दूल्हा कौन?

कहा जाता है कि एक दिन जब पड़ोस में बारात आई, मीराबाई अपनी सहेलियों के साथ छत पर गईं। वहां उन्होंने दूल्हे को देखने की इच्छा जताई। उन्होंने अपनी मां से पूछा कि उनका दूल्हा कौन है, तो मां ने श्री कृष्ण की मूर्ति की ओर इशारा किया। उसी क्षण मीराबाई के हृदय में भगवान का प्रेम बस गया और उन्होंने उन्हें अपना पति मान लिया।

ससुराल में मीराबाई का जीवन

जब मीराबाई का विवाह हुआ, तब उनका मन केवल भगवान में लगा हुआ था। उनके विवाह के खिलाफ जाकर उन्हें मेवाड़ के राजकुमार भोजराज से विवाह करने के लिए मजबूर किया गया। लेकिन विवाह के बाद भी उन्होंने कृष्ण की भक्ति नहीं छोड़ी और नियमित रूप से मंदिर जाकर भक्ति, संगीत और नृत्य करती रहीं, जो उनके ससुराल वालों को पसंद नहीं आया। कुछ समय बाद उनके पति भोजराज का निधन हो गया। इसके बाद मीराबाई पूरी तरह से कृष्ण भक्ति में लीन हो गईं। 1524 ईस्वी में, उन्होंने सब कुछ छोड़कर वृंदावन जाने का निर्णय लिया, जहाँ उन्होंने अपना जीवन कृष्ण भक्ति में समर्पित कर दिया।