मालेगांव विस्फोट मामले में सभी आरोपियों को मिली बरी होने की राहत

विशेष एनआईए अदालत ने 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया है। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में असफल रहा। प्रज्ञा ठाकुर ने इसे अपनी और भगवा समर्थकों की जीत बताया। विस्फोट में छह लोगों की मौत हुई थी और 100 से अधिक घायल हुए थे। जानें इस मामले की जटिलताओं और अदालत के निर्णय के पीछे के कारण।
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मालेगांव विस्फोट मामले में सभी आरोपियों को मिली बरी होने की राहत

विशेष एनआईए अदालत का निर्णय

2008 मालेगांव विस्फोट: विशेष एनआईए अदालत ने पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। सभी आरोपी अदालत में उपस्थित थे। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने में असफल रहा, जिससे आरोपियों को संदेह का लाभ मिला। यह निर्णय उस शक्तिशाली विस्फोट के लगभग 17 साल बाद आया, जिसमें छह लोग मारे गए और 100 से अधिक घायल हुए थे।


प्रज्ञा ठाकुर का बयान

भाजपा की पूर्व सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने कहा कि अदालत का निर्णय न केवल उनकी, बल्कि हर भगवा समर्थक की जीत है।


मामले की पृष्ठभूमि

प्रज्ञा ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों पर गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता के तहत आरोप लगाए गए थे। अन्य आरोपी मेजर (सेवानिवृत्त) रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी थे। राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) ने आरोपियों के लिए "उचित सजा" की मांग की थी।


2008 का मालेगांव विस्फोट

यह विस्फोट 29 सितंबर, 2008 को मालेगांव के एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र में हुआ था, जब रमज़ान का महीना चल रहा था। रिपोर्टों के अनुसार, विस्फोट के पीछे के लोगों ने सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने के लिए यह समय चुना। स्थानीय पुलिस ने मामले की जाँच महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) को सौंप दी। हालांकि, एनआईए अदालत ने कहा कि केवल 95 लोग घायल हुए थे, जबकि पहले 101 घायलों का दावा किया गया था।


अदालत का विश्लेषण

विशेष न्यायाधीश ए.के. लाहोटी ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में असफल रहा कि बम मोटरसाइकिल पर लगाया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि कोई ठोस सबूत नहीं है कि विस्फोटक कश्मीर से लाया गया था। जाँच में यह भी स्पष्ट नहीं हुआ कि मोटरसाइकिल किसने खड़ी की थी।


एटीएस की जाँच

एटीएस ने संदेह जताया कि विस्फोट में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल में इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) था। जाँच में पता चला कि मोटरसाइकिल का पंजीकरण नंबर नकली था और इसके इंजन और चेसिस नंबर मिटा दिए गए थे।


एनआईए की भूमिका

मालेगांव विस्फोट मामला 2011 में एनआईए को सौंपा गया। एनआईए ने 2016 में एक पूरक आरोपपत्र दायर किया और मकोका के तहत आरोपों को हटा दिया। एनआईए ने कहा कि एटीएस द्वारा एकत्र किए गए सबूतों में कई खामियाँ थीं।


अदालत का अंतिम निर्णय

अदालत ने एनआईए के सुझाव को स्वीकार किया कि प्रज्ञा ठाकुर का नाम आरोपी के तौर पर हटाया जाए, लेकिन अन्य सात आरोपियों पर यूएपीए, आईपीसी और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के तहत मुकदमा चलेगा।