मालेगांव विस्फोट मामले में सभी आरोपियों को बरी किया गया

मुंबई की विशेष अदालत ने सितंबर 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। इस फैसले पर भाजपा ने कांग्रेस पर तीखा हमला किया है, आरोप लगाते हुए कि वह इस मामले में वोट बैंक की राजनीति कर रही है। अदालत ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं हैं। यह मामला 17 वर्षों तक चला और इसमें कई न्यायाधीशों ने सुनवाई की। जानिए इस मामले की पूरी कहानी और इसके पीछे की न्यायिक प्रक्रिया के बारे में।
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मालेगांव विस्फोट मामले में सभी आरोपियों को बरी किया गया

विशेष अदालत का फैसला

मुंबई की एक विशेष अदालत ने गुरुवार को सितंबर 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। इस विस्फोट में छह लोगों की जान गई थी और 101 अन्य घायल हुए थे। इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कांग्रेस पर तीखा हमला किया, आरोप लगाते हुए कि वह मालेगांव मामले में वोट बैंक की राजनीति कर रही है। भाजपा के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि कांग्रेस का "हिंदू आतंकवाद" का नैरेटिव पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है। उन्होंने इसे "वोट बैंक की राजनीति के लिए रची गई साजिश" करार दिया और अदालत के निर्णय को सत्य की जीत बताया।


मालेगांव विस्फोट की पूरी कहानी

महाराष्ट्र के मालेगांव में 2008 के बम विस्फोट मामले में लगभग 17 वर्षों तक चले मुकदमे के दौरान न केवल जांच एजेंसियों में बदलाव हुआ, बल्कि पांच अलग-अलग न्यायाधीशों ने भी मामले की सुनवाई की। विशेष अदालत ने सभी आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि उनके खिलाफ कोई ‘विश्वसनीय और ठोस सबूत नहीं हैं।’


लंबा इंतजार और न्याय की प्रक्रिया

इस मामले की शुरुआत में महाराष्ट्र के आतंकवाद-निरोधी दस्ते (एटीएस) ने जांच की थी, जिसने दक्षिणपंथी चरमपंथियों पर आरोप लगाया था। बाद में, यह जांच एनआईए को सौंप दी गई, जिसने ठाकुर को क्लीन चिट दी थी। हालांकि, अदालत ने प्रथम दृष्टया सबूतों के आधार पर उनके खिलाफ मुकदमा चलाने का निर्णय लिया।


आरोपियों में से एक, समीर कुलकर्णी ने कहा कि यह मुकदमा सबसे लंबे समय तक चलने वाले मामलों में से एक था। उन्होंने अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष दोनों पर मुकदमे में तेजी लाने में विफल रहने का आरोप लगाया।


विस्फोट के पीड़ितों के अधिवक्ता शहीद नदीम ने भी स्वीकार किया कि न्यायाधीशों के बार-बार तबादले से मुकदमे में बाधा आई। उन्होंने बताया कि मामले के भारी रिकॉर्ड के कारण हर नए न्यायाधीश को नए सिरे से शुरुआत करनी पड़ी।


न्यायाधीशों का बदलाव और मुकदमे की प्रक्रिया

इस मामले की सुनवाई करने वाले पहले विशेष न्यायाधीश वाई. डी. शिंदे थे, जिन्होंने मकोका के इस्तेमाल को खारिज किया था। इसके बाद, विशेष न्यायाधीश एस.डी. टेकाले ने 2015 से 2018 तक मामले की सुनवाई की। न्यायाधीश टेकाले ने प्रज्ञा ठाकुर को क्लीन चिट देने के एनआईए के फैसले को खारिज कर दिया।


विशेष न्यायाधीश वी.एस. पडलकर ने अक्टूबर 2018 में आरोप तय किए और मुकदमा आधिकारिक रूप से शुरू हुआ। न्यायाधीश पी.आर. सित्रे ने 2020 में पडलकर की सेवानिवृत्ति के बाद कार्यभार संभाला।


जब 2022 में न्यायाधीश सित्रे का तबादला होना था, तो विस्फोट पीड़ितों ने उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि आगे मुकदमे में और देरी से बचने के लिए तबादले पर रोक लगाई जाए।