मालेगांव बम धमाका मामला: अदालत का फैसला और राजनीतिक विमर्श
मालेगांव बम धमाकों का मामला केवल एक आपराधिक प्रकरण नहीं था, बल्कि यह राजनीतिक और सामाजिक विमर्श से भी जुड़ा हुआ था। 2008 में हुए विस्फोट के मामले में अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया, जिससे कांग्रेस पार्टी को एक बड़ा झटका लगा है। इस फैसले ने 'हिंदू आतंकवाद' और 'भगवा आतंकवाद' जैसे शब्दों के प्रयोग पर सवाल उठाए हैं। जानें इस मामले की पूरी कहानी और इसके राजनीतिक प्रभावों के बारे में।
Jul 31, 2025, 17:58 IST
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मालेगांव बम धमाकों का मामला
मालेगांव बम धमाकों की घटना केवल एक आपराधिक मामले तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह राजनीतिक, सामाजिक और वैचारिक चर्चाओं से भी गहराई से जुड़ी हुई थी। 2008 में हुए इस विस्फोट के सिलसिले में सात व्यक्तियों पर गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम के तहत आतंकवादी कृत्य करने और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत हत्या एवं आपराधिक साजिश के आरोप लगाए गए थे। अभियोजन पक्ष का दावा था कि यह विस्फोट दक्षिणपंथी चरमपंथियों द्वारा किया गया था, जिनका उद्देश्य 'आर्यावर्त' (हिंदू राष्ट्र) की स्थापना करना था। इस मामले में कुल 14 लोगों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन केवल सात पर मुकदमा चला, क्योंकि अन्य सात को आरोप तय होने के समय बरी कर दिया गया था। विशेष अदालत ने आज फैसला सुनाते हुए भाजपा की पूर्व सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया, यह कहते हुए कि उन्हें दोषी साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं।
इस फैसले को कांग्रेस पार्टी के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है, जिसने 'हिंदू आतंकवाद' और 'भगवा आतंकवाद' जैसे शब्दों को गढ़ने का प्रयास किया था। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह और पी. चिदंबरम ने इस घटना को आधार बनाकर इन शब्दों को सार्वजनिक विमर्श में लाने की कोशिश की थी। इस शब्दावली ने न केवल राजनीतिक बहस को बढ़ावा दिया, बल्कि समाज में गहरे विभाजन की आशंका भी उत्पन्न की थी। अब अदालत का यह आदेश उन सभी के लिए एक बड़ा झटका है, जिन्होंने बिना न्यायिक निष्कर्ष के किसी समुदाय या विचारधारा को आतंकवाद से जोड़ने की कोशिश की थी।
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यह भी ध्यान देने योग्य है कि चिदंबरम ने आतंकवाद को 'भगवा' रंग से जोड़कर उस समय विवाद खड़ा किया था, जब यूपीए सरकार आतंकवाद को रोकने में पूरी तरह असफल नजर आ रही थी। 2010 में नई दिल्ली में राज्यों के पुलिस महानिदेशकों और पुलिस महानिरीक्षकों के सम्मेलन में चिदंबरम ने कहा था कि हाल के बम विस्फोटों से 'भगवा आतंकवाद' का नया स्वरूप सामने आया है। यह ध्यान देने योग्य है कि भगवा रंग भारतीय संस्कृति का प्रतीक है, जिसे राजनीतिक स्वार्थ के चलते आतंकवाद से जोड़ा गया। अब अदालत के फैसले के बाद दिग्विजय सिंह और चिदंबरम जैसे नेताओं को यह समझ लेना चाहिए कि आतंकवाद का कोई रंग नहीं होता। यदि किसी रंग को आतंकवाद से जोड़ने की आवश्यकता है, तो उसे काले रंग से जोड़ना चाहिए, क्योंकि आतंकवाद जहां भी होता है, वहां केवल काला अध्याय ही छोड़ता है।
यह भी याद रखने योग्य है कि 'भगवा आतंकवाद' पर टिप्पणी करते समय चिदंबरम के दिमाग में केवल साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित और देवेंद्र गुप्ता के नाम आए थे। पुणे धमाकों के आरोपियों- यासीन भटकल, रियाज भटकल और बंगलुरु धमाके के आरोपी मदनी का नाम लेना वह भूल गए थे। जो लोग कहते हैं कि 'बांटो और राज करो' की नीति केवल अंग्रेजों के समय की थी, वे गलत हैं, क्योंकि यह नीति कांग्रेस के शासनकाल तक भारत में चलती रही।