मार्गशीर्ष पूर्णिमा: स्नान, दान और पूजा का महत्व
मार्गशीर्ष पूर्णिमा का महत्व
हर वर्ष मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मार्गशीर्ष पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इस बार यह विशेष रूप से रवि योग में आ रहा है, जो इसे और भी अधिक पुण्यदायी बनाता है।
इस दिन स्नान, दान और लक्ष्मी पूजा करने से जीवन में धन, वैभव और समृद्धि में वृद्धि होती है। आइए जानते हैं मार्गशीर्ष पूर्णिमा का सही समय, मुहूर्त और पूजा विधि।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा की तिथि और समय
दृक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष मार्गशीर्ष पूर्णिमा 4 दिसंबर, गुरुवार को सुबह 8:37 बजे से प्रारंभ होकर 5 दिसंबर, शुक्रवार को प्रात: 4:43 बजे तक रहेगी। इस दिन व्रत, स्नान और दान का विशेष महत्व है।
रवि योग का महत्व
4 दिसंबर को बन रहे रवि योग का समय सुबह 6:59 बजे से दोपहर 2:54 बजे तक है। इस समय किए गए पुण्यकर्मों का विशेष प्रभाव होता है। स्नान और दान करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और सभी प्रकार के दोष दूर होते हैं।
स्नान और दान का मुहूर्त
इस दिन स्नान का शुभ मुहूर्त सुबह 8:38 बजे से शुरू होता है। स्नान के बाद अपनी सामर्थ्यानुसार अन्न, वस्त्र या अन्य वस्तुओं का दान करें। शुभ मुहूर्त सुबह 8:04 बजे से 9:25 बजे तक है।
ब्रह्म मुहूर्त 5:10 से 6:04 बजे तक, और अभिजीत मुहूर्त 11:50 से 12:32 बजे तक रहेगा। निशिता मुहूर्त देर रात 11:45 बजे से 12:39 बजे तक है।
चंद्र दर्शन का महत्व
पूर्णिमा की रात चंद्रमा शाम 4:35 बजे प्रकट होगा। जो व्रती चंद्रमा को अर्घ्य देंगे, उनके घर में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है। पूर्णिमा व्रत के दौरान चंद्र दर्शन और अर्घ्य देना अत्यंत शुभ माना जाता है।
लक्ष्मी पूजा का समय और विधि
मार्गशीर्ष पूर्णिमा को माता लक्ष्मी की पूजा प्रदोष काल में की जाती है। इस वर्ष प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद शाम 5:24 बजे से शुरू होगा। इस समय माता लक्ष्मी की पूजा करने से धन, वैभव और घर में समृद्धि आती है।
भद्रा और राहुकाल
इस दिन भद्रा सुबह 8:37 बजे से शाम 6:40 बजे तक रहेगी। भद्रा स्वर्ग में स्थित होने के कारण किसी भी प्रकार का दुष्प्रभाव नहीं लाती।
राहुकाल दोपहर 1:29 बजे से 2:48 बजे तक रहेगा, इस समय कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।
धार्मिक महत्व
मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर स्नान, दान और लक्ष्मी पूजा से पुण्य की प्राप्ति होती है। चंद्रमा को अर्घ्य देने और व्रत करने से परिवार में सुख, शांति और समृद्धि बढ़ती है। इस दिन सत्यनारायण भगवान की कथा का आयोजन करना भी अत्यंत शुभ माना जाता है।
इन पुण्यकर्मों से न केवल जीवन सुखमय बनता है, बल्कि मनोबल और आत्मविश्वास भी बढ़ता है।
