मायावती की मुस्लिम नेताओं के साथ बैठक: क्या है नई रणनीति?
बसपा सुप्रीमो मायावती की नई पहल
बसपा सुप्रीमो मायावती.
उत्तर प्रदेश की राजनीतिक परिदृश्य में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख मायावती ने एक बार फिर जातिगत समीकरणों को साधने का प्रयास किया है। 29 अक्टूबर को लखनऊ में मुस्लिम समाज भाईचारा संगठन की बैठक में 450 मुस्लिम नेताओं को संबोधित करते हुए, उन्होंने सपा और कांग्रेस पर हमला बोला और बीजेपी को हराने के लिए एक ‘रामबाण’ फॉर्मूला पेश किया। यह दलित-मुस्लिम (एमडी) गठजोड़ है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह 9 अक्टूबर की रामाबाई रैली में योगी आदित्यनाथ की प्रशंसा के बाद उत्पन्न बैकलैश का डैमेज कंट्रोल है या 2007 की सोशल इंजीनियरिंग का नया अध्याय? सपा प्रवक्ता इसे ‘डर की राजनीति’ मानते हैं, जबकि बसपा कार्यकर्ता इसे ‘मिशन 2027’ की शुरुआत के रूप में देख रहे हैं.
बैठक में ‘पीली फाइल’ और नीली टोपियां
बसपा मुख्यालय में आयोजित इस डेढ़ घंटे की बैठक में यूपी के 75 जिलों से मुस्लिम नेता शामिल हुए। मायावती ने उन्हें ‘पीली फाइल’ सौंपी, जिसमें बसपा सरकारों (विशेषकर 2007) में मुस्लिमों के लिए किए गए 100 प्रमुख कार्यों की सूची थी। इसमें मदरसा बोर्ड का गठन, उर्दू-फारसी शिक्षकों की भर्ती, शिया-सुन्नी वक्फ बोर्ड, शिक्षा-रोजगार में आरक्षण, आवास योजनाएं और सुरक्षा उपाय शामिल थे.

बैठक में मायावती ने कहा कि मुस्लिम समाज को सपा और कांग्रेस जैसी पार्टियों से दूर रहना चाहिए। उन्होंने आश्वासन दिया कि यदि बसपा सत्ता में आई, तो बुलडोजर कार्रवाई रुकेगी और मुस्लिमों पर दर्ज ‘विद्वेषपूर्ण’ मुकदमे वापस लिए जाएंगे। इसके साथ ही, हर मंडल में दो सदस्यीय ‘मुस्लिम भाईचारा कमेटी’ बनाने की घोषणा की गई.
सपा प्रमुख अखिलेश यादव की तर्ज पर बसपा नेताओं को नीली टोपियां पहनाई गईं। पार्टी उपाध्यक्ष आकाश आनंद भी उपस्थित रहे, जो मायावती के आशीर्वाद के बाद सक्रिय नजर आए। बसपा समर्थकों ने इसे ‘पुराने घर में वापसी’ का नारा दिया, और 2027 विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए एक नया नारा भी गढ़ा गया… “मुस्लिम समाज बोल रहा है—आओ लौट चलें बसपा में”.
योगी की प्रशंसा का ‘डर’ या रणनीतिक चूक?
यह बैठक 9 अक्टूबर की कांशीराम जयंती रैली के 20 दिन बाद हुई, जहां मायावती ने योगी सरकार की प्रशंसा की थी। उन्होंने कहा था कि दलित महापुरुषों के नाम पर बने स्मारकों से जो भी धन आएगा, उसका उपयोग स्मारकों की देखभाल के लिए किया जाएगा। इसके लिए योगी सरकार को धन्यवाद दिया गया। इसके बाद समाजवादी पार्टी ने बसपा पर हमला करते हुए कहा कि ऐसी प्रशंसा के पीछे कोई मजबूरी रही होगी और इसे भाजपा की बी टीम की संज्ञा दी गई.
राजनीतिक विश्लेषक इसे बसपा के लिए हानिकारक मानते हैं, यह कहते हुए कि योगी सरकार की प्रशंसा करने से मुस्लिम वोटर बसपा से दूर हो जाएंगे। क्या मायावती ने इसी नुकसान को कम करने के लिए 75 जिलों के मुस्लिम नेताओं की बैठक बुलाई, या 2007 में जो सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला था, उसे फिर से लागू करने की कोशिश की? यह ध्यान देने योग्य है कि यूपी में मुस्लिम वोट (19%) का 80% हिस्सा अखिलेश के पास है, और मायावती का यह दांव PD (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) फॉर्मूले पर सीधी चोट है?
बसपा की मुस्लिम भाईचारा बैठक.
बसपा की पुरानी सोशल इंजीनियरिंग की रणनीति
मायावती की यह रणनीति 2007 की याद दिलाती है, जब ‘सर्वजन हिताय’ फॉर्मूले के तहत दलितों को ब्राह्मणों से जोड़कर बसपा ने 206 सीटें जीती थीं। अब ‘एमडी’ समीकरण उसी का विस्तार है, जिसमें बसपा का फॉर्मूला ‘दलित (21%) + मुस्लिम = सत्ता का रास्ता’ है। हालांकि, 2012, 2017 और 2022 में यह रणनीति विफल रही। मायावती की बसपा नेताओं की बैठक अधिकतर डैमेज कंट्रोल लगती है। इसमें सोशल इंजीनियरिंग की चाल भी स्पष्ट है। 2027 तक एमडी समीकरण सफल होगा या नहीं, यह यूपी की राजनीति का अगला मोड़ बताएगा। यह निश्चित है कि यदि बसपा का वोट शेयर बढ़ता है, तो मुकाबला त्रिकोणीय होगा.
