महुआ मोइत्रा की सीबीआई जांच के खिलाफ चुनौती पर अदालत में बहस

महुआ मोइत्रा ने सीबीआई द्वारा उनके खिलाफ पैसे लेने के मामले में अभियोजन की अनुमति देने वाले लोकपाल के आदेश को चुनौती दी है। उन्होंने अदालत से इस आदेश को रद्द करने की मांग की है, यह कहते हुए कि उनके अधिकारों का उल्लंघन हुआ है। सीबीआई ने इस चुनौती को 'तुच्छ' बताते हुए कहा कि मोइत्रा को मौखिक सुनवाई का कोई अधिकार नहीं है। इस मामले में सीबीआई की दलीलें और मोइत्रा के तर्कों के बीच तीखी बहस चल रही है।
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महुआ मोइत्रा की सीबीआई जांच के खिलाफ चुनौती पर अदालत में बहस

सीबीआई की दलीलें और मोइत्रा की चुनौती

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने शुक्रवार को दिल्ली उच्च न्यायालय में कहा कि महुआ मोइत्रा द्वारा पैसे लेने के मामले में अभियोजन की अनुमति देने वाले लोकपाल के आदेश को चुनौती देना 'तुच्छ' है। इस चुनौती के बाद, यह बहस छिड़ गई कि अनुमति मिलने से पहले तृणमूल कांग्रेस सांसद को क्या अधिकार प्राप्त थे।


मोइत्रा ने अदालत से लोकपाल के 12 नवंबर के आदेश को रद्द करने की मांग की है। उनका कहना है कि इस आदेश में उनकी दलीलों को नजरअंदाज किया गया है और यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।


सांसद ने आरोप लगाया कि निगरानी संस्था ने गलत तरीके से सीबीआई को उनके खिलाफ आरोपपत्र दाखिल करने की अनुमति दी, जिसमें उन पर व्यवसायी दर्शन हीरानंदानी से नकद और उपहार स्वीकार करने का आरोप है, जो संसद में प्रश्न पूछने के बदले में था।


सीबीआई का विरोध और कानूनी तर्क

सीबीआई की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू ने कहा कि लोकपाल ने कानूनी आवश्यकताओं से 'काफी आगे' जाकर काम किया है। उन्होंने अदालत को बताया कि मोइत्रा को लोकपाल अधिनियम के तहत मौखिक सुनवाई का कोई अधिकार नहीं है और उनका एकमात्र वैधानिक अधिकार टिप्पणी दर्ज कराना है।


राजू ने यह भी कहा कि इसके बावजूद, उन्हें टिप्पणियाँ, हलफनामे और मौखिक प्रस्तुतियाँ देने की अनुमति दी गई, जिन सभी पर मंजूरी देने से पहले विचार किया गया।


उन्होंने अदालत को बताया कि यह याचिका ऐसे समय में दस्तावेज़ पेश करने का प्रयास है जब कानून में ऐसा कोई अवसर नहीं है। राजू ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता के विपरीत, लोकपाल ढाँचे में समन या व्यापक साक्ष्यों के आदान-प्रदान का कोई प्रावधान नहीं है।