महिला ने हलाला प्रथा पर उठाए सवाल, दर्दनाक अनुभव साझा किया

एक महिला ने हलाला प्रथा के तहत अपने दर्दनाक अनुभव साझा किए हैं, जिसमें उसने अपने ससुर के साथ निकाह करने की मजबूरी और उसके बाद के घटनाक्रम का जिक्र किया। उसने इस प्रथा को महिलाओं की अस्मिता के लिए खतरा बताया और इसे समाप्त करने की अपील की। यह कहानी न केवल व्यक्तिगत संघर्ष को दर्शाती है, बल्कि समाज में व्याप्त कुप्रथाओं पर भी सवाल उठाती है।
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एक दर्दनाक कहानी

महिला ने हलाला प्रथा पर उठाए सवाल, दर्दनाक अनुभव साझा किया


नई दिल्ली: मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरी जिंदगी इस तरह एक मजाक बन जाएगी। मेरी शादी 2009 में हुई थी और मैं अपने पति के साथ खुशहाल जीवन बिताना चाहती थी। लेकिन जब दो साल तक संतान नहीं हुई, तो मेरे पति ने मुझे तलाक दे दिया। यह मेरे लिए एक बड़ा सदमा था, लेकिन इसके बाद जो हुआ, वह और भी दर्दनाक था।


ससुर के साथ हलाला की मजबूरी मेरे पति ने मुझसे फिर से निकाह करने के लिए हलाला की शर्त रखी और मुझे अपने ससुर के साथ हलाला करने के लिए मजबूर किया। मुझे यह सब सहना पड़ा ताकि मैं अपने पति के पास वापस जा सकूं। मजबूरी में मैंने अपने ससुर से निकाह किया और इसी दौरान मैं उनके बच्चे की मां भी बनी। लेकिन कुछ समय बाद मेरे ससुर ने भी मुझे तलाक दे दिया।


फिर से तलाक का सामना इसके बाद, मेरे पति ने मुझसे दोबारा निकाह किया, लेकिन कुछ समय बाद फिर से तलाक दे दिया। इस बार उन्होंने मुझसे कहा कि मैं उनके भाई से हलाला करूं। यह सुनकर मैं अंदर तक हिल गई। पहले मैं उनके पिता की पत्नी बनी, अब उनके भाई की पत्नी बन जाऊं? क्या मैं सिर्फ एक वस्तु हूं, जिसे जब चाहा, जैसे चाहा इस्तेमाल कर लिया?


हलाला प्रथा का विरोध मेरे परिवार ने इसका विरोध किया, लेकिन उन्हें धमकियां दी गईं। यह मेरे लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं था। मैं यह सब सिर्फ इसलिए नहीं सह सकती थी कि कोई इंसान अपनी इच्छाओं को पूरा कर सके। हलाला जैसी प्रथा एक महिला की अस्मिता और आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने वाली है। यह एक ऐसी कुप्रथा है, जो औरत को एक वस्तु बना देती है। मैं चाहती हूं कि यह प्रथा खत्म हो, ताकि कोई और महिला इस दर्द से न गुजरे। हम इंसान हैं, कोई सामान नहीं, जिसे जब चाहे बदल दिया जाए।