महाराष्ट्र में बंधुआ मजदूरी से बच्चों की मुक्ति: एक गंभीर मामला

बंधुआ मजदूरी का मामला
भारत में बाल मजदूरी एक अपराध है, लेकिन कई बार आर्थिक तंगी के कारण लोग इसे अपनाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। गरीब परिवारों के बच्चे बहुत कम उम्र में काम करने लगते हैं, जिससे कुछ लोग उनका शोषण करते हैं और उन्हें कम पैसे में काम करने के लिए मजबूर करते हैं। हाल ही में, महाराष्ट्र के अहिल्यानगर जिले में एक फिल्मी अंदाज में दो बच्चों ने बंधुआ मजदूरी से भागने में सफलता पाई।
पुलिस की कार्रवाई
पुलिस ने अहिल्यानगर जिले से छह बच्चों सहित कुल 14 लोगों को बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराया। एक अधिकारी ने बताया कि यह मामला तब उजागर हुआ जब दो बच्चे बीड जिले में दो आरोपियों के घरों से भाग निकले, जहां उन्हें और उनके परिवार को कठिन श्रम करने के लिए मजबूर किया जा रहा था।
आरोपियों की पहचान
अधिकारी ने बताया कि पीड़ित बच्चे पुणे और रायगढ़ जिलों के निवासी हैं। आरोपियों, विजू सेठ और उत्तम सेठ, ने पिछले डेढ़ साल से इन बच्चों से काम कराया था। एक आठ वर्षीय बाल मजदूर ने पुलिस को बताया कि उन्हें गोबर इकट्ठा करने, मवेशियों के बाड़े साफ करने, लकड़ी लाने और जंगल में मवेशियों को चराने का काम दिया जाता था।
मुक्ति के बाद की स्थिति
हालांकि, पीड़ितों को 12 जुलाई को मुक्त कर दिया गया था, लेकिन पुलिस ने अधिकार क्षेत्र का हवाला देते हुए आरोपियों के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं किया था। राज्य स्तरीय आदिवासी विकास आढावा समिति के विवेक पंडित ने बताया कि विरोध प्रदर्शनों के बाद पुलिस ने मंगलवार रात मामला दर्ज किया। इसके साथ ही, राजस्व अधिकारियों ने पीड़ितों को सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए मुक्ति प्रमाणपत्र जारी किए।