महाराष्ट्र की वारी: भक्ति और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक

वारी का महत्व और परंपरा
महाराष्ट्र के सोलापूर जिले में स्थित पंढरपूर का विठ्ठल रखमाई का विशेष महत्व है। हर वर्ष, भक्त पैदल यात्रा के माध्यम से विठ्ठल रखुमाई के दर्शन करते हैं, जिसे वारी कहा जाता है। विठ्ठल को माऊली (माँ) के नाम से भी जाना जाता है।
भक्ति परंपरा का अभिन्न हिस्सा
वारी, महाराष्ट्र की विठ्ठल-रखुमाई भक्ति परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो वारकरी संप्रदाय की आध्यात्मिक यात्रा को दर्शाती है। यह परंपरा संत ज्ञानेश्वर, संत तुकाराम और संत एकनाथ जैसे महान संतों द्वारा स्थापित की गई थी। हर साल आषाढ़ी और कार्तिकी एकादशी पर लाखों भक्त पंढरपुर के विठ्ठल मंदिर में दर्शन के लिए एकत्र होते हैं। वारी केवल धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि सामाजिक समता, भक्ति और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है।
800 वर्षों की परंपरा
वारी की परंपरा लगभग 800 वर्ष पुरानी मानी जाती है। संत ज्ञानेश्वर ने भक्ति मार्ग को प्रोत्साहित किया और उनकी पालखी यात्रा ने वारी को एक ठोस रूप दिया। इसके बाद संत नामदेव, संत एकनाथ और संत तुकाराम ने इस परंपरा को और समृद्ध किया। वारकरी संप्रदाय भगवद्गीता, ज्ञानेश्वरी और तुकाराम गाथा पर आधारित है, जिसमें भक्ति, वैराग्य और समता को प्राथमिकता दी गई है। पंढरपुर का विठ्ठल-रखुमाई मंदिर इस संप्रदाय का केंद्र है।
वारी की यात्रा
महाराष्ट्र की वारी एक पैदल यात्रा है, जिसमें भक्त अपने गांवों से पालखी जुलूस के साथ पंढरपुर की ओर प्रस्थान करते हैं। यह यात्रा मुख्य रूप से दो पालखियों के इर्द-गिर्द घूमती है: संत ज्ञानेश्वर पालखी, जो आलंदी (पुणे) से शुरू होती है, और संत तुकाराम पालखी, जो देहू (पुणे) से शुरू होती है। ये पालखियां 21-22 दिनों में लगभग 250-300 किलोमीटर की दूरी तय कर पंढरपुर पहुंचती हैं।
सामाजिक एकता का प्रतीक
वारी केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक उत्सव भी है। इसमें जाति, धर्म, लिंग का कोई भेद नहीं होता; सभी वारकरी समान माने जाते हैं। पैदल चलना और सादा जीवन वारी को पर्यावरण के अनुकूल बनाता है। मराठी साहित्य, संगीत और लोककला का संगम वारी में देखने को मिलता है।
आधुनिक समय में वारी
आधुनिक समय में वारी का स्वरूप बदल गया है। अब कई वारकरी बस, ट्रैक्टर या अन्य वाहनों से पंढरपुर पहुंचते हैं, लेकिन पारंपरिक पैदल वारी का महत्व अब भी बरकरार है। तकनीक के कारण वारी का लाइव प्रसारण, सोशल मीडिया पर प्रचार और ऑनलाइन दर्शन संभव हो गया है।
दिल्ली की प्रतीकात्मक वारी
दिल्ली मराठी प्रतिष्ठान द्वारा 2021 से आयोजित प्रतीकात्मक वारी, महाराष्ट्र की वारी का एक प्रतीकात्मक स्वरूप है। यह वारी 6 जुलाई 2025 को आषाढ़ी एकादशी के अवसर पर अपनी पांचवीं वर्षगांठ मनाएगी। यह यात्रा सुबह 5:45 बजे बाबा खड़क सिंह मार्ग पर प्राचीन हनुमान मंदिर से शुरू होकर आर.के. पुरम के विठ्ठल मंदिर तक जाएगी।
भक्ति का संदेश
वारी केवल पंढरपुर या विठ्ठल मंदिर तक पहुंचने की यात्रा नहीं, बल्कि अपने भीतर पांडुरंग को खोजने का आध्यात्मिक सफर है। महाराष्ट्र की वारी भक्ति, समता और सांस्कृतिक एकता का जीवंत प्रतीक है।