महाभियोग प्रस्ताव पर चर्चा के लिए अमित शाह की ओम बिरला से मुलाकात

गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से मुलाकात की, जिसमें न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर चर्चा की गई। इस प्रस्ताव को विभिन्न राजनीतिक दलों का समर्थन प्राप्त है। न्यायमूर्ति वर्मा पर बेहिसाब नकदी मिलने के आरोप हैं, जिसके चलते उनकी पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू की गई है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी इस संदर्भ में एक प्रस्ताव प्राप्त किया है। जानें इस मामले की पूरी जानकारी और इसके पीछे की कहानी।
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महाभियोग प्रस्ताव पर चर्चा के लिए अमित शाह की ओम बिरला से मुलाकात

महाभियोग प्रस्ताव पर चर्चा

गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से उनके निवास पर मुलाकात की। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस बैठक में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर चर्चा होने की संभावना है। उल्लेखनीय है कि न्यायमूर्ति वर्मा के घर से इस वर्ष की शुरुआत में जले हुए नोट मिले थे। इससे पहले, सोमवार को 152 सांसदों ने अध्यक्ष बिरला को ज्ञापन सौंपा, जिसके बाद न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की गई। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पर बेहिसाब नकदी मिलने के कारण कदाचार के आरोप लगे हैं।


संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 के तहत दायर इस प्रस्ताव को भाजपा, कांग्रेस, टीडीपी, जेडी(यू), सीपीआई(एम) और अन्य दलों के सांसदों का समर्थन प्राप्त हुआ है। हस्ताक्षरकर्ताओं में सांसद अनुराग ठाकुर, रविशंकर प्रसाद, राहुल गांधी, राजीव प्रताप रूडी, सुप्रिया सुले, केसी वेणुगोपाल और पीपी चौधरी शामिल हैं।


उपराष्ट्रपति का इस्तीफा और प्रस्ताव

सोमवार की रात उपराष्ट्रपति पद से अचानक इस्तीफ़ा देने वाले जगदीप धनखड़ ने उच्च सदन में कहा कि उन्हें न्यायमूर्ति वर्मा को हटाने की मांग वाला एक प्रस्ताव प्राप्त हुआ है, जिस पर 50 से अधिक राज्यसभा सांसदों के हस्ताक्षर हैं। चूंकि 152 लोकसभा सांसदों ने भी ऐसा ही प्रस्ताव दिया था, इसलिए उन्होंने महासचिव को महाभियोग प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया। संविधान के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को हटाने के लिए राष्ट्रपति के आदेश का पालन करना आवश्यक है, जिसके लिए कम से कम 100 लोकसभा या 50 राज्यसभा सांसदों के हस्ताक्षर वाला प्रस्ताव होना चाहिए। प्रस्ताव को स्वीकार करने या न करने का निर्णय अध्यक्ष या सभापति लेते हैं।


जस्टिस वर्मा की विवादास्पद स्थिति

न्यायमूर्ति वर्मा 14 मार्च से चर्चा में हैं, जब एक आग लगने की घटना के बाद अग्निशामक और पुलिस उनके सरकारी आवास पर पहुंचे थे। वहां भारी मात्रा में अधजली नकदी बरामद हुई थी। उस समय, न्यायमूर्ति वर्मा दिल्ली उच्च न्यायालय में कार्यरत थे और बाद में उनका तबादला इलाहाबाद उच्च न्यायालय में किया गया। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शील नागू की अध्यक्षता में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त एक जांच पैनल ने 10 दिनों तक इस घटना की जांच की। पैनल ने 55 गवाहों से पूछताछ की और आग लगने वाली जगह का निरीक्षण किया, जो कथित तौर पर 14 मार्च की रात लगभग 11.35 बजे लगी थी। रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकाला गया कि न्यायमूर्ति वर्मा और उनके परिवार का उस स्टोर रूम पर गुप्त या सक्रिय नियंत्रण था, जहां नकदी मिली थी, जिससे यह साबित हुआ कि उनका कदाचार इतना गंभीर था कि उन्हें पद से हटाया जाना चाहिए।