महाभियोग प्रस्ताव: जस्टिस वर्मा के खिलाफ चुनौती और अतीत के अनुभव

केंद्र सरकार जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर विचार कर रही है, लेकिन इसे लागू करना आसान नहीं होगा। पिछले छह महाभियोग प्रस्तावों के अनुभव बताते हैं कि यह प्रक्रिया जटिल है और राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है। इस लेख में, हम महाभियोग प्रस्तावों के इतिहास और प्रक्रिया की विस्तृत जानकारी प्रदान कर रहे हैं, जिससे पाठक इस महत्वपूर्ण विषय को बेहतर समझ सकें।
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महाभियोग प्रस्ताव: जस्टिस वर्मा के खिलाफ चुनौती और अतीत के अनुभव

महाभियोग प्रस्ताव की जटिलता

केंद्र सरकार आगामी मानसून सत्र में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर विचार कर सकती है, लेकिन इसे सफलतापूर्वक लागू करना आसान नहीं होगा। पिछले छह मामलों के अनुभव को देखते हुए, महाभियोग प्रस्ताव कभी भी अंतिम चरण तक नहीं पहुंचा है। यह स्पष्ट है कि इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है।


महाभियोग प्रस्तावों का इतिहास

पहला मामला: जस्टिस जेवी रामास्वामी के खिलाफ 1993 में महाभियोग प्रस्ताव पेश किया गया था, लेकिन यह आवश्यक दो-तिहाई बहुमत प्राप्त करने में असफल रहा।


दूसरा मामला: कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस सौमित्र सेन ने 2011 में महाभियोग प्रस्ताव पारित होने के बाद इस्तीफा दे दिया।


तीसरा मामला: 2015 में गुजरात हाईकोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला को उनके विवादास्पद बयान के लिए नोटिस दिया गया, लेकिन मामला ठंडा पड़ गया।


चौथा मामला: उसी वर्ष, जस्टिस एसके गंगेले के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों के चलते महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए गए, लेकिन जांच में आरोप साबित नहीं हुए।


पांचवां मामला: 2017 में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना हाईकोर्ट के जस्टिस सीवी नागार्जुन रेड्डी के खिलाफ प्रस्ताव पेश किया गया, लेकिन यह भी आगे नहीं बढ़ा।


छठा मामला: मार्च 2018 में सीजेआई जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का मसौदा तैयार किया गया, लेकिन यह भी निष्क्रिय रहा।


महाभियोग प्रक्रिया का विवरण

सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया समान होती है। यह अनुच्छेद 124(4) और 218 के तहत शुरू होती है और जजेज इंक्वायरी एक्ट-1968 के माध्यम से आगे बढ़ती है।


महाभियोग प्रस्ताव केवल प्रमाणित कदाचार और अक्षमता के आधार पर ही लाया जा सकता है। यदि मुख्य न्यायाधीश किसी जज के खिलाफ महाभियोग की सिफारिश करते हैं, तो राष्ट्रपति या सरकार इसे आगे बढ़ाने का निर्णय लेती है।


महाभियोग प्रस्ताव को सदन में पेश करने के लिए राज्यसभा के 50 या लोकसभा के 100 सदस्यों का समर्थन आवश्यक है। इसके बाद, सदन के स्पीकर एक तीन सदस्यीय समिति का गठन करते हैं, जो आरोपों की जांच करती है।


समिति की रिपोर्ट के बाद, सदन में चर्चा होती है और प्रस्ताव को पारित करने के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। यदि प्रस्ताव दोनों सदनों से पारित होता है, तो इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है, जो संबंधित जज को पद से हटाने का आदेश जारी करते हैं।