महाकुंभ में महिला साध्वियों का संन्यास दीक्षा समारोह

महाकुंभ में महिला साध्वियों का विजया संस्कार
प्रयागराज: महाकुंभ के दौरान, महिला साध्वियों ने पुरुष नागाओं के साथ मिलकर विजया संस्कार का आयोजन किया, जिसमें उन्हें संन्यासी जीवन की दीक्षा दी गई। रविवार को जूना अखाड़े में, एक सौ से अधिक महिलाओं ने इस संस्कार में भाग लिया और विधिपूर्वक अपने गुरु से संन्यास की दीक्षा प्राप्त की। दीक्षा लेने वाली सभी महिलाओं ने अपने परिवार के साथ-साथ स्वयं का भी पिण्डदान किया, जिससे उनका सामाजिक जीवन समाप्त हो गया और अब उनका जीवन केवल प्रभु के लिए समर्पित रहेगा।
विजया संस्कार के दौरान, सभी साध्वी बनने वाली महिलाओं को एक कतार में बैठाया गया, जहां उन्हें चंदन लगाया गया। इसके बाद, सभी ने गुरु द्वारा बताए गए मंत्रों का जाप किया। इसके बाद, महिला सन्यासियों को गंगा में स्नान करवा कर शुद्धि की गई और गुरु ने उन्हें संन्यास की दीक्षा दी। इस प्रक्रिया के दौरान, अखाड़े की महिला कोतवाल ने सुनिश्चित किया कि सभी संस्कार सही तरीके से संपन्न हो रहे हैं।
निरंजनी अखाड़े ने सैकड़ों लोगों को नागा बनने की गुरु दीक्षा दी। महंत और महामंडलेश्वर की देखरेख में गंगा किनारे विजया संस्कार का आयोजन किया गया। पहले, नागा संन्यासी बनने वाले व्यक्तियों को कतार में बैठाकर उनकी शुद्धि कराई गई, फिर उनके माथे पर चंदन लगाकर उन्हें जनेयु धारण कराया गया और गंगा स्नान कराया गया। इसके बाद, सभी ने अपने परिवार और स्वयं का पिण्डदान किया और गुरु ने उन्हें संन्यास की दीक्षा दी। अब से ये सभी लोग नागा संन्यासी कहलाएंगे।
निरंजनी अखाड़े के महंत और अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष स्वामी रविंद्र गिरी ने बताया कि नागा बनने की प्रक्रिया अत्यंत कठिन होती है, जिसमें व्यक्ति को अपने परिवार और समाज का त्याग करना होता है। इसलिए इन्हें शिव की सेना कहा जाता है।
किसी भी व्यक्ति को नागा साधु या साध्वी की दीक्षा देने से पहले, अखाड़े के पदाधिकारी उस व्यक्ति की गहन जांच करते हैं। इस दौरान यह पता लगाया जाता है कि वह संन्यास के मार्ग पर क्यों चलना चाहता है। यहां तक कि उसके परिवार और अन्य गतिविधियों की भी जानकारी ली जाती है। इसके बाद ही उन्हें संन्यास जीवन की दीक्षा दी जाती है। इस पूरी प्रक्रिया में कई दिन लगते हैं, और फिर कुम्भ या अर्ध कुम्भ में उन्हें साधु बनाया जाता है।