महबूबा मुफ्ती ने खीर भवानी मंदिर में की पूजा, कश्मीरी पंडितों की वापसी की अपील

महबूबा मुफ्ती ने गंदेरबल में खीर भवानी मंदिर में पूजा की और कश्मीरी पंडितों की सम्मानजनक वापसी की अपील की। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के मुद्दों का समाधान केवल राजनीतिक प्रक्रिया से ही संभव है। खीर भवानी मेला कश्मीरी पंडितों और मुसलमानों के बीच एकता और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। यह त्योहार प्रेम और एकता के मूल्यों को दर्शाता है, जो कश्मीर की आत्मा को परिभाषित करते हैं।
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महबूबा मुफ्ती ने खीर भवानी मंदिर में की पूजा, कश्मीरी पंडितों की वापसी की अपील

महबूबा मुफ्ती का खीर भवानी मंदिर में पूजा

जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती ने गंदेरबल में खीर भवानी मंदिर में पूजा-अर्चना की। खीर भवानी मेला कश्मीरी पंडित समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण वार्षिक धार्मिक उत्सव है, जो गंदेरबल जिले के तुल्ला मुल्ला गांव में मनाया जाता है। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि पीडीपी का मानना है कि जम्मू-कश्मीर के मुद्दों का समाधान केवल राजनीतिक प्रक्रिया के माध्यम से ही संभव है, न कि बंदूक के बल पर। आतंकवाद इसका हल नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि जब तक सभी कश्मीरी पंडित अपने घर वापस नहीं लौटते, तब तक यह राजनीतिक प्रक्रिया संभव नहीं है।


खीर भवानी मेले का महत्व

महबूबा मुफ्ती ने खीर भवानी मेले के शुभ अवसर पर जम्मू-कश्मीर के लोगों, विशेषकर कश्मीरी पंडितों को शुभकामनाएं दीं। यह त्योहार कश्मीरी पंडितों और मुसलमानों के बीच एकता, सद्भाव और साझा सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि मेला खीर भवानी केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह हमारी साझा संस्कृति और कश्मीरी पंडितों और मुसलमानों के बीच के अटूट बंधन का उत्सव है।


त्योहार का संदेश

महबूबा मुफ्ती ने कहा कि यह त्योहार प्रेम, करुणा और एकता के मूल्यों की याद दिलाता है, जो कश्मीर की आत्मा को परिभाषित करते हैं। उन्होंने अपने कश्मीरी पंडित भाइयों की सम्मानजनक वापसी और घाटी में स्थायी शांति के लिए प्रार्थना की। देवी खीर भवानी को समर्पित यह वार्षिक उत्सव कश्मीरी पंडितों के लिए सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक आयोजनों में से एक है, जो तुल्लामुल्ला में हजारों भक्तों को आकर्षित करता है।


आशा और एकता का प्रतीक

इस क्षेत्र में दशकों से चल रही चुनौतियों के बावजूद, यह त्योहार आशा, लचीलापन और सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक बना हुआ है। यह कश्मीरी पंडितों और मुसलमानों के बीच गहरे संबंधों का एक मजबूत प्रतीक है, जो कठिन समय में एकजुट होकर खड़े रहे हैं और धार्मिक तथा सांस्कृतिक विभाजनों से परे एकता का प्रदर्शन किया है।