महबूब मुजावर का विवादास्पद बयान: आरएसएस प्रमुख को गिरफ्तार करने का था आदेश

महाराष्ट्र के पूर्व पुलिस अधिकारी महबूब मुजावर ने एक विवादास्पद बयान दिया है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने का निर्देश दिया गया था। यह बयान मालेगांव विस्फोट मामले में सभी आरोपियों के बरी होने के बाद आया है। मुजावर ने कहा कि उन्हें गलत तरीके से फंसाया गया और उन्होंने अदालत में अपने सबूत पेश किए। जानें इस मामले की पूरी जानकारी और मुजावर के आरोपों के पीछे की कहानी।
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महबूब मुजावर का विवादास्पद बयान: आरएसएस प्रमुख को गिरफ्तार करने का था आदेश

महबूब मुजावर का चौंकाने वाला खुलासा

महाराष्ट्र के पूर्व पुलिस अधिकारी महबूब मुजावर ने हाल ही में एक गंभीर आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि उन्हें आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने का निर्देश दिया गया था। महबूब मुजावर 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले की जांच कर रहे आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) का हिस्सा थे। जब एनआईए कोर्ट ने मालेगांव ब्लास्ट मामले में सभी आरोपियों को बरी किया, तब मुजावर ने मीडिया से अपने विचार साझा किए।


मीडिया से बातचीत में मुजावर का बयान

महबूब मुजावर ने मीडिया से बातचीत में कहा कि उनके तत्कालीन बॉस परमबीर सिंह और अन्य अधिकारियों ने उन्हें मोहन भागवत को लाने का आदेश दिया था। उस समय 'भगवा आतंकवाद' की चर्चा जोरों पर थी। उन्होंने कहा, "मैंने गलत काम नहीं किया, लेकिन मुझे इसकी सजा मिली, मुझे जेल भेजा गया और बदनाम किया गया। मैंने जो सबूत थे, उन्हें कोर्ट में पेश किया।" मुजावर ने यह भी आरोप लगाया कि इस फैसले ने एक फर्जी अधिकारी द्वारा की गई 'मनगढ़ंत जांच' का पर्दाफाश किया है।


जांच में अनियमितताओं का आरोप

मुजावर ने कहा कि उनसे मृत व्यक्तियों को जीवित दिखाकर चार्जशीट दाखिल करने के लिए कहा गया। जब उन्होंने इनकार किया, तो तत्कालीन आईपीएस अधिकारी परमवीर सिंह ने उन्हें झूठे मामले में फंसा दिया। उन्होंने यह भी बताया कि अब उन्हें उन सभी मनगढ़ंत मामलों में बरी कर दिया गया है। यह आरोप गुरुवार को विशेष निचली अदालत के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए लगाए गए, जिसमें सभी सात आरोपियों को बरी किया गया था। अदालत ने यह फैसला विश्वसनीय सबूतों की कमी और प्रक्रियागत खामियों के आधार पर लिया।


मालेगांव विस्फोट मामले का अदालती फैसला

मुंबई की विशेष अदालत ने मालेगांव विस्फोट के लगभग 17 साल बाद, जिसमें छह लोग मारे गए और 100 से अधिक घायल हुए थे, पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित समेत सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि उनके खिलाफ कोई विश्वसनीय और ठोस सबूत नहीं मिले।