महंगी दवाओं की आशंका: विशेषज्ञों की चिंता और सरकारी कदम

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि सरकार द्वारा आवश्यक दवाओं के कच्चे माल पर न्यूनतम आयात मूल्य लागू करने से दवाओं की कीमतें बढ़ सकती हैं। इस कदम का असर सरकारी दवा खरीद प्रणाली और आम मरीजों पर पड़ सकता है। जानें कि कैसे यह निर्णय फार्मा उद्योग को प्रभावित कर सकता है और क्या संभावित समाधान हो सकते हैं।
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महंगी दवाओं की आशंका: विशेषज्ञों की चिंता और सरकारी कदम

महंगी दवाओं की आशंका

महंगी दवाओं की आशंका: विशेषज्ञों की चिंता और सरकारी कदम

विशेषज्ञों की चिंताएँ

सरकार आवश्यक दवाओं के कच्चे माल को सस्ता और सुरक्षित रखने के लिए नए उपाय कर रही है, लेकिन फार्मा क्षेत्र के विशेषज्ञ इसके विपरीत प्रभाव की आशंका जता रहे हैं। उनका कहना है कि कुछ महत्वपूर्ण फार्मास्यूटिकल इनपुट्स पर न्यूनतम आयात मूल्य (MIP) लागू करने से आम मरीजों पर वित्तीय बोझ बढ़ सकता है और सरकारी दवा खरीद प्रणाली भी प्रभावित हो सकती है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, सरकार पेनिसिलिन-जी (Pen-G) पर न्यूनतम आयात मूल्य लागू करने पर विचार कर रही है। इसके अलावा, इसे 6-एपीए और एमोक्सिसिलिन जैसे अन्य आवश्यक इनपुट्स तक बढ़ाने की योजना है। इन दवाओं का उपयोग देश में बड़े पैमाने पर एंटीबायोटिक्स बनाने में किया जाता है। सरकार का उद्देश्य चीन से सस्ते आयात और डंपिंग को रोकना है, ताकि घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिल सके।

विशेषज्ञों की चिंताएँ

रिपोर्ट के अनुसार, फार्मा विशेषज्ञों का कहना है कि Pen-G केवल एक उत्पाद नहीं है, बल्कि यह कई आवश्यक एंटीबायोटिक्स का 'मदर मॉलिक्यूल' है। इससे बनने वाली दवाएं सरकारी अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य प्रणाली में बड़े पैमाने पर उपयोग की जाती हैं। यदि इस पर मूल्य मंजूरी दी गई, तो कई आवश्यक दवाओं की लागत अपने आप बढ़ जाएगी।

उनका मानना है कि बिना ठोस सबूत के इस तरह का निर्णय लेने से दवाओं की कीमतें बढ़ सकती हैं, विशेषकर उन लोगों के लिए जो सरकारी योजनाओं पर निर्भर हैं।

सरकारी टेंडर्स पर प्रभाव

विशेषज्ञों का कहना है कि सरकारी दवा टेंडर्स पहले से ही बहुत कम मार्जिन पर चलते हैं। मौजूदा कीमतों पर राज्यों द्वारा एमोक्सिसिलिन और उससे संबंधित दवाओं की खरीद हजारों करोड़ रुपये में होती है। यदि कच्चे माल की लागत अचानक बढ़ती है, तो कई सप्लायर्स नुकसान में जा सकते हैं। इससे टेंडर्स रद्द होने, दोबारा बोली लगाने और दवाओं की आपूर्ति में देरी का खतरा बढ़ सकता है।

घरेलू उत्पादन की स्थिति

हालांकि सरकार घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना चाहती है, लेकिन वास्तविकता यह है कि देश की मौजूदा उत्पादन क्षमता जरूरत से काफी कम है। भारत अभी भी बड़ी मात्रा में Pen-G और 6-APA का आयात करता है। ऐसे में आयात पर सख्ती करने से आपूर्ति में कमी आ सकती है, जिसका सीधा असर मरीजों पर पड़ेगा।

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PLI योजना और नया जोखिम

2020 में सरकार ने चीन पर निर्भरता कम करने के लिए PLI योजना शुरू की थी। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यदि PLI के साथ-साथ उच्च MIP भी लागू किया गया, तो यह स्थायी सुरक्षा कवच बन सकता है। इससे कंपनियों पर लागत कम करने और उत्पादन बढ़ाने का दबाव कम हो जाएगा, जबकि बोझ सीधे मरीजों और सरकारी बजट पर आ सकता है।

संभावित समाधान

उद्योग के जानकार मानते हैं कि घरेलू ढांचे को मजबूत करना आवश्यक है, लेकिन इसके लिए संतुलित दृष्टिकोण अपनाना होगा। उनका कहना है कि कीमतें तय करने के बजाय उत्पादन क्षमता बढ़ाने, संचालन में सुधार और स्केल बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए, ताकि आवश्यक दवाएं सस्ती भी रहें और आपूर्ति भी बनी रहे.