ममता बनर्जी ने 'कर्मश्री' योजना का नाम महात्मा गांधी के नाम पर रखा
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 'कर्मश्री' योजना का नाम महात्मा गांधी के नाम पर रखने की घोषणा की है। उन्होंने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वह गांधी के नाम को कल्याणकारी योजनाओं से हटा रही है। यह कदम आगामी विधानसभा चुनावों के संदर्भ में महत्वपूर्ण है, क्योंकि ममता ने इसे भावनात्मक और वैचारिक मुद्दों से जोड़कर पेश किया है। उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब MGNREGA के नाम में बदलाव को लेकर राजनीतिक बहस चल रही है। ममता ने खुद को गांधीवादी मूल्यों की रक्षक के रूप में प्रस्तुत किया है और केंद्र सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए हैं।
| Dec 18, 2025, 18:38 IST
महात्मा गांधी के नाम पर 'कर्मश्री' योजना
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आज एक सार्वजनिक कार्यक्रम में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और वैचारिक घोषणा की। उन्होंने राज्य सरकार की रोजगार योजना 'कर्मश्री' का नाम महात्मा गांधी के नाम पर रखने का ऐलान किया। ममता ने कहा कि उन्हें इस बात पर “शर्म” महसूस होती है कि राष्ट्रीय स्तर पर महात्मा गांधी के नाम को कल्याणकारी योजनाओं से हटा दिया जा रहा है। उनका इशारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के नाम में किए गए बदलावों की ओर था, जिस पर विपक्ष केंद्र सरकार पर लगातार हमलावर है।
मुख्यमंत्री ने बताया कि 'कर्मश्री' योजना के तहत राज्य में 75 से 100 दिनों तक रोजगार उपलब्ध कराया जाता है, और अब यह योजना महात्मा गांधी के नाम से जानी जाएगी। ममता बनर्जी ने भावुकता के साथ कहा, “मैं वास्तव में शर्मिंदा हूं। राष्ट्रपिता का नाम योजनाओं से हटा दिया जा रहा है। मैं किसी और को दोष नहीं देती, क्योंकि मैं इसी देश की नागरिक हूं। हम राष्ट्रपिता को भूलते जा रहे हैं, यह दुखद है।”
उन्होंने केंद्र सरकार पर अप्रत्यक्ष रूप से हमला करते हुए कहा कि यदि केंद्र महात्मा गांधी को सम्मान नहीं देगा, तो बंगाल ऐसा करेगा। ममता ने कहा, “अगर आप महात्मा गांधी का सम्मान नहीं करेंगे, तो हम करेंगे।” अपने भाषण में उन्होंने महात्मा गांधी के साथ-साथ नेताजी सुभाष चंद्र बोस, गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर, डॉ. भीमराव आंबेडकर, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, सरदार पटेल और लाल-बाल-पाल का भी उल्लेख किया। उन्होंने बंगाल की “समावेशी संस्कृति” का जिक्र करते हुए कहा कि राज्य हर समुदाय और विचारधारा का सम्मान करता है। यह बयान ऐसे समय में आया है जब MGNREGA के नाम और पहचान को लेकर देशभर में राजनीतिक बहस चल रही है, और तृणमूल कांग्रेस इसे केंद्र सरकार की “इतिहास और प्रतीकों को बदलने की राजनीति” बता रही है।
ममता बनर्जी का यह निर्णय केवल एक योजना का नाम बदलने का ऐलान नहीं है, बल्कि यह आगामी पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों की राजनीतिक पटकथा का पहला स्पष्ट अध्याय भी है। ममता जानती हैं कि बंगाल की राजनीति केवल विकास के आंकड़ों से नहीं, बल्कि भावनात्मक और वैचारिक मुद्दों से संचालित होती है। गांधी से बड़ा प्रतीक भारतीय राजनीति में शायद ही कोई हो।
कर्मश्री योजना को महात्मा गांधी के नाम से जोड़कर ममता बनर्जी ने कई लक्ष्यों को साधा है। पहले, उन्होंने खुद को गांधीवादी मूल्यों की रक्षक के रूप में प्रस्तुत किया है। दूसरे, केंद्र सरकार पर यह आरोप मजबूती से लगाया है कि वह राष्ट्रपिता की विरासत को हाशिए पर डाल रही है। तीसरे, उन्होंने ग्रामीण, गरीब और श्रमिक वर्ग के साथ एक भावनात्मक संबंध फिर से स्थापित करने की कोशिश की है। यह वही वर्ग है जो कभी वाम मोर्चे की ताकत हुआ करता था और आज तृणमूल की राजनीति की रीढ़ है।
आगामी चुनावों को देखते हुए ममता बनर्जी स्पष्ट रूप से राजनीति को “संविधान बनाम सत्ता”, “गांधी बनाम विचारधारा” और “राज्य बनाम केंद्र” के ध्रुव पर ले जाना चाहती हैं। यह वही रणनीति है जिसने उन्हें पहले भी भाजपा के आक्रामक चुनावी अभियान के सामने खड़ा रखा। ममता जानती हैं कि बंगाल में सीधे हिंदुत्व की राजनीति का जवाब देना कठिन है, इसलिए वह सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और संवैधानिक राष्ट्रवाद का विकल्प पेश कर रही हैं।
