मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण पर उच्चतम न्यायालय में सुनवाई से पहले संगठनों का दबाव

ओबीसी आरक्षण का मुद्दा
मध्यप्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने के संदर्भ में उच्चतम न्यायालय में सुनवाई से पहले ओबीसी महासभा और अन्य संगठनों ने राज्य सरकार पर दबाव बनाने का प्रयास किया है।
संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में ओबीसी महासभा, भीम आर्मी और जय आदिवासी युवा संगठन (जयस) के प्रतिनिधियों ने कहा कि यदि राज्य सरकार उनकी मांगों को नजरअंदाज करती है, तो वे बड़े पैमाने पर आंदोलन करने के लिए बाध्य होंगे।
ओबीसी महासभा की कार्यकारिणी सदस्य कमलेंद्र सिंह पटेल ने कहा, 'सरकारी नौकरियों में 'होल्ड' किए गए 13 प्रतिशत आरक्षण को तुरंत 'अनहोल्ड' किया जाए और 27 प्रतिशत आरक्षण के अनुसार नियुक्तियां की जाएं।'
उन्होंने यह भी कहा कि जातिगत जनगणना कराई जानी चाहिए और जनसंख्या आंकड़े सार्वजनिक किए जाने चाहिए, ताकि आरक्षण जनसंख्या के अनुपात में लागू किया जा सके। पटेल ने बताया, 'मध्यप्रदेश के लाखों ओबीसी युवा पिछले छह वर्षों से 13 प्रतिशत आरक्षण 'होल्ड' का सामना कर रहे हैं। यह अन्याय अब सहन नहीं किया जा सकता।'
उन्होंने चेतावनी दी कि यदि उच्चतम न्यायालय में ओबीसी समुदाय का पक्ष मजबूती से नहीं रखा गया, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। यह मामला उच्चतम न्यायालय में लंबित है और 22 सितंबर से इसकी नियमित सुनवाई शुरू होगी।
हाल ही में मुख्यमंत्री मोहन यादव ने इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाई थी, जिसमें उन्होंने कहा कि ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने पर सभी राजनीतिक दल सहमत हैं और विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका मिलकर इसे लागू करने के लिए प्रयास करेंगे।
साल 2019 में, कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने ओबीसी कोटा को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने का निर्णय लिया था, लेकिन यह मामला अदालत में जाने के कारण लागू नहीं हो सका।