मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की जाति व्यवस्था पर कड़ी टिप्पणी

मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य के न्यायिक ढांचे में जाति व्यवस्था और सामंती मानसिकता की आलोचना की है। अदालत ने न्यायाधीशों के बीच भेदभाव को उजागर करते हुए इसे 'सामंती आका और भूदास' के संबंधों से जोड़ा। न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन और न्यायमूर्ति डी के पालीवाली की खंडपीठ ने इस मुद्दे पर गंभीर टिप्पणियां की हैं। यह मामला न्यायाधीशों के बीच भय और हीनता की भावना को लेकर है, जो समाज में गहरी जड़ें जमा चुकी है।
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मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की जाति व्यवस्था पर कड़ी टिप्पणी

उच्च न्यायालय की आलोचना

मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक आदेश में राज्य के न्यायिक ढांचे में व्याप्त जाति व्यवस्था और सामंती सोच की कड़ी निंदा की है। अदालत ने यह बताया कि उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों को सवर्ण या विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग का माना जाता है, जबकि जिला न्यायाधीशों को शूद्र की श्रेणी में रखा जाता है।


इस संदर्भ में, उच्च न्यायालय और जिला न्यायालयों के न्यायाधीशों के बीच संबंधों की तुलना 'सामंती आका और भूदास' से की गई है। अदालत ने यह भी कहा कि एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग में भय और हीनता की भावना जानबूझकर डाली जाती है।


यह तीखी टिप्पणी न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन और न्यायमूर्ति डी के पालीवाली की खंडपीठ ने 14 जुलाई को न्यायाधीशों से संबंधित एक मामले की सुनवाई के दौरान की।