मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट में विवाद: सरकार का हलफनामा

मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण का विवाद

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव
मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार ओबीसी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा पेश करने के बाद विवाद में उलझ गई है। बीजेपी पर 'हिंदू विरोधी' होने का आरोप लगाते हुए कुछ स्क्रीनशॉट सोशल मीडिया पर वायरल हुए हैं। इन पोस्ट में कहा गया है कि सरकार का हलफनामा 1983 की रामजी महाजन आयोग की रिपोर्ट का हवाला दे रहा है। हालांकि, सरकार ने इन आरोपों को पूरी तरह से खारिज कर दिया है।
वायरल पोस्ट में यह भी कहा गया है कि मध्य प्रदेश सरकार का हलफनामा सामान्य जातियों के लिए एक चेतावनी है। आरोप है कि पार्टी, जो हमेशा हिंदुओं को एकजुट करने का दावा करती है, अब अदालत में हिंदू धर्म को अन्याय और शोषण का प्रतीक बता रही है। इसमें यह भी कहा गया है कि हलफनामे के कुछ अंशों में हिंदू धर्मग्रंथों को हिंदुओं के पिछड़ेपन के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है।
इसके अलावा, ट्विटर पर वायरल हुए स्क्रीनशॉट में कई अन्य अजीब दावे भी शामिल हैं। एक स्क्रीनशॉट में रामायण में ऋषि शंबूक की हत्या को जातिगत उत्पीड़न का उदाहरण बताया गया है। एक अन्य में मनुस्मृति को शूद्रों की तुलना जानवरों से करने का आरोप लगाया गया है। इन दावों के जवाब में सरकार ने स्पष्टीकरण जारी किया और विवादास्पद अंशों से खुद को अलग किया।
सरकार का स्पष्टीकरण
मध्य प्रदेश सरकार ने कहा कि कुछ शरारती तत्वों द्वारा सोशल मीडिया पर गलत जानकारी फैलाई जा रही है। सरकार ने स्पष्ट किया कि वायरल सामग्री मध्य प्रदेश सरकार के हलफनामे का हिस्सा नहीं है और यह पूरी तरह से असत्य है। यह सामग्री वास्तव में मध्य प्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की अंतिम रिपोर्ट का हिस्सा है, जो 1980 में गठित किया गया था।
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आरक्षण से संबंधित मामले में पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट पेश की है, जिसमें महाजन आयोग की रिपोर्ट के साथ-साथ अन्य रिपोर्टें भी शामिल हैं।
हलफनामे में सरकार का तर्क
मध्य प्रदेश सरकार ने ओबीसी के लिए आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% करने के अपने निर्णय का समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पिछड़े समुदाय की जनसंख्या 85% से अधिक है और वे गंभीर रूप से वंचित हैं। सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर 8 अक्टूबर से सुनवाई करेगा। राज्य ने 2011 की जनगणना का हवाला देते हुए कहा कि अनुसूचित जातियों का प्रतिनिधित्व 15.6%, अनुसूचित जनजातियों का 21.1% और ओबीसी का 51% से अधिक है।
सरकार ने कहा कि ओबीसी को पहले केवल 14% आरक्षण दिया गया था, जो जनसंख्या के हिसाब से अनुपातहीन था। 27% तक की वृद्धि को उचित और संवैधानिक रूप से आवश्यक सुधार बताया गया है। यह हलफनामा मध्य प्रदेश लोक सेवा आरक्षण अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में दायर किया गया है।
आरक्षण की स्थिति
2022 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण को 14% से अधिक देने पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अंतिम सुनवाई अक्टूबर 2025 के लिए निर्धारित की है। चूंकि मध्य प्रदेश में अनुसूचित जातियों को 16% और अनुसूचित जनजातियों को 20% आरक्षण प्राप्त है, इसलिए ओबीसी आरक्षण को बढ़ाकर 27% करने से कुल आरक्षण 50% की सीमा से अधिक हो जाएगा।